________________ खण्ड 2, प्रकरण : 2 प्रत्येक-बुद्ध 367 राजी पाँच-पाँच दिनों से उसी पर्वत पर कनकमाला से मिलने जाया करता था। वह कुछ दिन उसके साय बिता कर अपने नगर को लौट आता। इस प्रकार काल बीतने लगा। लोग कहते-"राजा पर्वत पर है।" उसके बाद उसका नाम 'नग्गति' पड़ा। - एक दिन राजा भ्रमण करने निकला। उसने एक पुष्पित आम्र-वृक्ष देखा / एक मञ्जरी को तोड़ बह आगे निकला। साथ वाले सभी व्यक्तिओं ने मञ्जरी, पत्र, प्रवाल, पुष्प, फल आदि सारे तोड़ डाले। आम्र का वृक्ष अब केवल ठूठ मात्र रह गया। राजा पुनः उसी मार्ग से लौटा। उसने पूछा-"वह आम्र-वृक्ष कहाँ है ?" मंत्री ने अँगुली के इशारे से उस ठूठ की ओर संकेत किया। राजा आम की उस अवस्था को देख अवाक रह गया। उसे कारण ज्ञात हुआ। उसने सोचा-“जहाँ ऋद्धि है, वहाँ शोमा है परन्तु ऋद्धि स्वभावतः चञ्चल होती है / " इन विचारों से वह संबुद्ध हो गया। बौद्ध-ग्रन्थ के अनुसार गांधार राष्ट्र में तक्षशिला नाम का नगर था / वहाँ 'नग्गजी' नाम का राजा राज्य करता था। एक दिन उसने एक स्त्री को देखा। वह एक-एक हाथ में एक-एक कंगन पहने सुगन्धी पीस रही थी। राजा ने देखा, एक-एक कंगन के कारण न रगड़ होती है और न आवाज / इतने में ही उस स्त्री ने दायें हाथ का कंगन बाएँ हाथ में पहन लिया और दायें हाथ से सुगंधी समेटती हुई बाएं हाथ से पीसने लगे। अब एक हाथ में दो कंगन हो गए। आपस के घर्षण से शब्द होने लगा। राजा ने यह सुना / उसने सोचा-"यह कंगन अकेला था तो रगड़ नहीं खाता था, अब दो हो जाने के कारण रगड़ खाता है और आवाज करता है। इसी प्रकार ये प्राणी भी अकेले-अकेले में न रगड़ खाते हैं और न आवाज करते हैं। दो-तीन होने के कारण रगड़ खाते हैं, आवाज करते हैं। मुझे भी चाहिए कि मैं अकेला हो जाऊँ और अपना ही विचार करता रहूँ।" इन विचारों ही विचारों में विपश्यना की वृद्धि करते हुए वह प्रत्येक-बुद्ध हो गया / 2 जैन-कथानक के अनुसार . प्रत्येक बुद्ध का नाम राष्ट्र नगर पिता का नाम वैराग्य का कारण 1. करकण्डु कलिंग कांचनपुर दधिवाहन बूढ़ा बैल 2. द्विमुख पाञ्चाल काम्पिल्य जय इन्द्र-ध्वज 3. नमि विदेह मिथिला युगबाहु एक चूड़ी की निरववता 4. नग्गति गांधार पुण्ड्रवर्धन दृढ़सिंह मंजरी विहीन पाम्र पुरिसपुर वृक्ष १-सुखबोधा, पत्र 141-145 / १-कुम्भकार जातक (सं० 408), जातक, चौथा खण्ड, पृष्ठ 39 /