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________________ 364 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन स्थापना की। वह इन्द्रध्वज अनेक प्रकार के पुष्पों, घण्टियों तथा मालाओं से सज्जित किया गया। लोगों ने उसकी पूजा की। स्थान-स्थान पर नृत्य-गीत होने लगे। सारे लोग मोद-मग्न थे। इस प्रकार सात दिन बीते / पूर्णिमा के दिन महाराज द्विमुख ने इन्द्रध्वज की पूजा की। पूजा-काल समाप्त हुआ। लोगों ने इन्द्रध्वज के आभूषण उतार लिए और काष्ठ को सड़क पर फेंक दिया। एक दिन राजा उसी मार्ग से निकला। उसने उस इन्द्रध्वज काष्ठ को मल-मूत्र में पड़े देखा। उसे वैराग्य हो आया। वह प्रत्येक बुद्ध हो पंच-मुष्टि लोच कर प्रवजित हो गया।' बौद्ध-ग्रन्थ के अनुसार उत्तर-पञ्चाल राष्ट्र में कम्भिल नाम का नगर था / वहाँ दुमुख नाम का राजा राज्य करता था। एक दिन वह प्रातःकाल के भोजन से निवृत्त हो, अलंकार पहन कर राज्यांगण की शोभा देख रहा था। उसी समय ग्वालों ने वृज का द्वार खोला। वृषभ व्रज से निकले / कामुकता के वशीभूत हो उन्होंने एक गौ का पीछा किया। काम-मात्सर्य से दो साँड लड़ने लगे। एक नुकोले सोंग वाले साँड़ ने दूसरे साँड़ की जाँघ में प्रहार किया। तोत्र प्रहार से आँत बाहर निकल आई। वहीं उसका प्राणान्त हो गया। राजा ने यह देखा और सोचा-"सभी प्राणी कामुकता के कारण कष्ट पाते हैं। मुझे चाहिए कि मैं इन कष्टदायी कामभोगों को छोड़ दूँ / " उसने खड़े ही खड़े प्रत्येक-बोधि प्राप्त कर ली। ३-नमि जैन-ग्रंथ के अनुसार ___ अवन्ती देश में सुदर्शन नाम का नगर था / वहाँ मणिरथ नाम का राजा राज्य करता था। युगबाहु इसका भाई था। उसकी पत्नी का नाम मदनरेखा था। मणिरथ ने युगबाहु को मार डाला / मदनरेखा गर्भवती थी / वह वहाँ से अकेली चल पड़ी। जंगल में उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसे रत्नकम्बल में लपेट कर वहीं रख दिया और स्वयं शौच-कर्म करने जलाशय में गई। वहाँ एक जलहस्ती ने उसे सूंड से पकड़ा और आकाश में उछाला। विदेह राष्ट्र के अन्तर्गत मिथिला नगरी का नरेश पद्मरथ शिकार करने जंगल में आया। उसने उस बच्चे को उठाया। वह निष्पुत्र था। पुत्र की सहज प्राप्ति पर उसे प्रसन्नता हुई / बालक उसके घर में बढ़ने लगा। उसके प्रभाव से पद्मरथ / १-सुखबोधा, पत्र 135-136 / २-कुम्भकार जातक (सं० 408), जातक, चतुर्थ खण्ड, पृ० 39-40 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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