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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन प्राचीन हैं। इनमें से किसी को भी हम केवल बौद्ध-मत का ही नहीं मान सकते। बौद्ध विद्वानों ने अपने-अपने आचार-विचार के अनुसार कुछ परिवर्तन कर उसे अपनाया है। इनमें बहुत सारे तो भारतीय लोक-कथाओं के संग्रह हैं / इनसे जो आचार विषयक बाते प्राप्त होती हैं, वे भी एकान्ततः भारतीय हैं।" इस तथ्योक्ति से भी यह सिद्ध होता है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी से बहुत पूर्व कई कथाएँ प्रचलित थों, जिन्हें तीनों धाराओं ने अपनाया है। जातकों का पद्य-भाग ( जो प्रचलित पद्यों का संग्रह मात्र है ) बहुत विश्वसनीय है, क्योंकि वह उस भाषा में है जो कई शताब्दियों पुरानी है। ___ अन्त में उनकी मान्यता है कि “जातक में वर्णित कथाएँ पद्य-भाग के बिना ही प्रचलित थीं। जब वे बौद्ध-परम्परा में सम्मिलित की गई (ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में) तब उनमें प्रचलित पंद्य जोड़ दिए गए। इसलिए सम्भव है कि ये कथाएँ बौद्ध-काल से पूर्व की ही नहीं, किन्तु बहुत प्राचीन हैं / " 3 जातकों का प्रणयन और संकलन मध्यदेश में प्राचीन जन-कथाओं के आधार पर हुआ है / विन्टरनिटज ने भी इसी मत को माना है।५।। . भरतसिंह उपाध्याय का मान्यता है कि जातक तो मूल रूप में केवल गाथाएँ हैं, शेष भाग तो उसकी व्याख्या है।६ समीक्षा पूर्व लिखित कथानकों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर मस्तिष्क पर पहला प्रभाव यह होता है कि एक परम्परा ने दूसरी परम्परा का अनुकरण किया है। किन्तु किसने किसका अनुकरण किया, इसका इतिवृत्त हमें ज्ञात नहीं है। कालक्रम की दृष्टि से विचार करने पर फलित होता है कि जैन और महाभारत के लेखकों ने बौद्धों का अनुकरण किया है। क्योंकि बौद्ध-संगीतियों का समय जैन-वाचनाओं तथा महाभारत की 1-Buddhist India, p. 197. २-वही, पृ० 204 / ३-बही, पृ० 206 / ४-वही, पृ० 172,207,208 / ५-इन्डियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृ० 113,114,12-1123 / ६-पाली साहित्य का इतिहास, पृ० 306 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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