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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 355 जहाँ कहीं जनक या उनके वंश के राजाओं का प्रसंग है, वहाँ आत्मा और शरीर के भेद-ज्ञान की चर्चा', मोक्षतत्त्व का विवेचन, तृष्णा-त्याग', ममत्व-त्याग' आदिआदि की चर्चा है। विष्णु पुराण में उल्लेख है कि मिथिला के सभी नरेश आत्म-वादी होते हैं। . इन तथ्यों से दो फलित सामने आते हैं(१) जनक श्रमण-परम्परा को मानने वाले प्राचीन पुरुष थे। (2) जनक के संवाद जो महाभारत में उल्लिखित हुए हैं, वे ब्राह्मणेतर-परम्परा के हैं और वह परम्परा श्रमण-परम्परा होनी चाहिए। जातकों की तुलना से हमने देखा कि उनमें उल्लिखित कथाएँ जैन-कथावस्तु से निकट हैं / हम पहले यह भी कह चुके हैं कि जातकों का गद्य-भाग अर्वाचीन है / बहुत प्राचीन काल से अनेक उदाहरण और कथानक प्रचलित थे। अपनी-अपनी रुचि के अनुसार धर्मग्रन्थों ने उसे अपनाया और कुछ एक संशोधन से उसे अपने सिद्धान्तों के अनुसार ढाल कर स्वीकार कर लिया। राइस डेविड्स ने जातकों के विषय में ऊहापोह करते हुए लिखा है कि बौद्ध-साहित्य के नौ विभागों में जातक एक विभाग है। परन्तु यह विभाग आज के जातक से सर्वथा भिन्न था। प्राचीन जातक के अध्ययन से हम दो महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाल सकते हैं-एक तो यह है कि प्राचीन जातक का बहुलांश भाग किसो एक ढाँचे में ढला हुआ नहीं था और उसमें कोई पद्य नहीं थे। वे केवल काल्पनिक कथाएँ ( Fables ), उदाहरण ( Parables) और आख्यायिकाएँ ( Legends ) मात्र थे। दूसरी बात यह है कि उपलब्ध जातक केवल प्राचीन जातक के अंश मात्र हैं / 5 राइस डेविड्स ने दस ऐसे जातकों को ढूंढ निकाला है, जिनके सूक्ष्म अध्ययन से यह प्रकट होता है कि वे बुद्ध से पूर्व भी जन-कथाओं के रूप में प्रचलित थे। इन जातकों के विषय में उनका अभिमत यह है-"ये सारे जातक बौद्ध-साहित्य से भी ज्यादा १-महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय 218 / २-वही, शान्तिपर्व, अध्याय 219 / ३-वहो, शान्तिपर्व, अध्याय 276 / ४-वही, शान्तिपर्व, अध्याय 178 / / 5-Buddhist India, page 196, 197. ६-वही, पृ० 195 / वे दस जातक ये हैं--अपन्नक (सं० 1), मखादेव (सं० 9), सुखविहारी (सं० 10), तित्तिर (सं० 37), 'लित (सं० 91), महा-सुदस्सन ( सं० 95), खण्ड-वट्ट (सं० 203 ), मणि-कन्ठ ( सं 253 ), बक ब्रह्म (सं० 405) /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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