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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 . कथानक संक्रमण 346 ____ इस प्रकार नमि और इन्द्र के बीच लम्बा संभाषण हुआ। जब इन्द्र ने देखा कि राजा नमि अपने संकल्प पर अडिग है, तब उसने अपना मूल रूप प्रकट किया और नमि की स्तुति कर चला गया। नमि श्रामण्य में उपस्थित हो गए। बौद्ध-कथावस्तु विदेह राष्ट्र के मिथिला नगर में महाजनक नाम का राजा राज्य करता था। उसके अरिट्ठजनक और पोलजनक नाम के दो पुत्र थे। पिता की मृत्यु के पश्चात् अरिट्ठजनक राजा बना। कालान्तर में दोनों भाइयों में वैमनस्य बढ़ा। पोलजनक प्रत्यन्त-ग्राम में चला गया। वहाँ संगठित हो अपने दल-बल के साथ वह मिथिला पहुंचा और भाई को युद्ध के लिए ललकारा। युद्ध हुआ। अरिटुजनक मारा गया। पति की मृत्यु की बात सुन उसकी पत्नी घर से निकल गई। वह गर्भवती थी। उसने एक पुत्र को जन्म दिया। पितामह के नाम पर उसका नाम महाजनक कुमार ही रखा। वह बड़ा हुआ। उसने तीनों वेद और सब शिल्प सीख लिए। माँ की आज्ञा ले वह पिता का राज्य लेने मिथिला पहुंचा। राजा पोलजनक मर चुका था। उसके कोई पुत्र नहीं था। कुमार महाजनक राजा बनाया गया। कुमारी सीवली से उसका विवाह हआ। उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम दीर्घायु कुमार रखा। एक दिन राजा महाजनक उद्यान देखने गया। वहाँ आम के दो वृक्ष थे। एक पर फल थे, दूसरे पर नहीं / राजा ने एक फल खाया। साथ वाले सभी ने एक-एक फल तोड़ा। सारा वृक्ष फलहीन हो गया। उसकी शोभा नष्ट हो गई। राजा ने लौटते समय देखा-दोनों वृक्ष फल से रहित हैं। उसने माली से पूछा / सारी बात जान कर उसने सोचा-यह दूसरा वृक्ष फल-रहित होने के कारण हरा-भरा खड़ा है। यह फलदार होने से नोचा गया, खसोटा गया। यह राज्य भी फलदार-वृक्ष के समान है / प्रव्रज्या फल-रहित वृक्ष के समान है / जिसके पास कुछ भी है, उसे भय है, जिसके पास कुछ भी नहीं, उसे भय भी नहीं। मैं फलदार-वृक्ष जैसा न रह, फल-रहित वृक्ष जैसा होऊँगा। वह प्रतिबुद्ध हुआ। प्रासाद में रहते हुए भी श्रमण-धर्म का पालन करते-करते उसके चार महीने गुजर गए। प्रव्रज्या की ओर उसका चित्त अत्यधिक झुक गया। घर नरक के समान लगने लगा। उसने सोचा-'यह कब होगा कि मैं इस समृद्ध, विशाल और सम्पत्ति से परिपूर्ण मिथिला को छोड़ कर प्रजित होऊंगा ?' राजा प्रवजित हो गया। रानियों ने रोकने का प्रयास किया। सीवली देवी ने एक उपाय ढूँढ़ निकाला। उसने महासेना रक्षा को बुला कर आज्ञा दी-"तात ! राजा के जाने के रास्तों पर आगे-आगे पुराने घरों तथा पुरानी शालाओं में आग लगा दो। घास-पत्ते इकटे करा कर जहाँ-तहाँ धुआँ करा दो।" उसने वैसा करा दिया। सीवली ने राजा से जा कर कहा
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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