________________ खण्ड : 1, प्रकरण : 1 १-श्रमण और वैदिक परम्पराएं तथा उनका पौर्वापर्य७ अरिष्टनेमि अरिष्टनेमि बाईसवें तीर्थङ्कर थे / उन्हें अभी तक पूर्णत: ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं माना गया है किन्तु वासुदेव कृष्ण को यदि ऐतिहासिक व्यक्ति माना जाय तो अरिष्टनेमि को ऐतिहासिक न मानने का कोई कारण नहीं। कौरव, पाण्डव, जरासंध, द्वारका, यदुवंश, अन्धक, वृष्णि आदि का अस्तित्व नहीं मानने का कोई कारण नहीं। पौराणिक विस्तार व कल्पना को स्वीकार न करें फिर भी ये कुछ मूलभूत तथ्य शेष रह जाते हैं। ऋषि-भाषित ( इसि-भासिय ) में 45 प्रत्येक बुद्धों के द्वारा निरूपित 45 अध्ययन हैं। उनमें 20 प्रत्येक बुद्ध भगवान् अरिष्टनेमि के तीर्थकाल में हुए थे। उनके द्वारा निरूपित अध्ययन अरिष्टनेमि के अस्तित्व के स्वयंभूत प्रमाण हैं। ऋग्वेद में 'अरिष्टनेमि' शब्द चार वार आया है / 2 "स्वस्ति नस्तार्यो अरिष्टनेमिः" ( ऋग्वेद, 1 / 14 / 86 / 6 ) में अरिष्टनेमि शब्द भगवान् अरिष्टनेमि का वाचक होना चाहिए। महाभारत में 'तार्थ्य' शब्द अरिष्टनेमि के पर्यायवाची नाम के रूप में प्रयुक्त हुआ है / ' तार्थ्य अरिष्टनेमि ने राजा सगर को जो मोक्ष विषयक उपदेश दिया उसकी तुलना जैन-धर्म के मोक्ष सम्बन्धी सिद्धांतों से होती है / वह उपदेश इस प्रकार है: “सगर ! संसार में मोक्ष का सुख ही वास्तविक सुख है, परन्तु जो धन-धान्य के उपार्जन में व्यग्र तथा पुत्र और पशुओं में आसक्त है, उस मूढ़ मनुष्य को उसका यथार्थज्ञान नहीं होता। जिसकी बुद्धि विषयों में आसक्त है ; जिसका मन अशान्त रहता है, ऐसे मनुष्य की चिकित्सा करनी कठिन है, क्योंकि जो स्नेह के बंधन में बंधा हुआ है, वह मूढ़ मोक्ष पाने के लिए योग्य नहीं होता।"४ इस समूचे अध्याय में संसार की असारता, मोक्ष की महत्ता, उसके लिए प्रयत्नशील होने और मुक्त के स्वरूप का निरूपण है / सगर के काल में वैदिक लोग मोक्ष में विश्वास नहीं करते थे, इसलिए यह उपदेश किसी वैदिक ऋषि का नहीं हो सकता / यहाँ 'तार्क्ष्य अरिष्टनेमि' का प्रयोग भगवान् अरिष्टनेमि के लिए ही होना चाहिए। १-इसि-भासियाई, पृ० 297, परिशिष्ट 1, गाथा 1: पत्तेय बुद्धमिसिणो वीसं तित्थ अरिटणेमिस्स। २-ऋग्वेद, 1314 / 89 / 6 ; 1124 / 180 / 10 ; 3 / 4 / 53 / 17 ; 10 / 12 / 178 / 1 / ३-महाभारत, शान्तिपर्व, 2884 : एवमुक्तस्तदा तायः सर्वशास्त्रविदां वरः। विबुध्य सम्पदं चाग्रयां सद्वाक्यमिदमब्रवीत् // ४-महाभारत, शान्तिपर्व, 2885,6 /