________________ 322 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन चौथे के पैदा होने पर अज-पाल नाम। वह बकरियाँ चराने वालों के साथ बढ़ने लगा। वे बड़े होने के साथ-साथ सौभाग्यशाली हुए। - उनके प्रवजित होने के डर से राज्य-सीमा से सभी प्रव्रजितों को निकाल दिया गया। सारे काशी-राष्ट्र में एक प्रवजित भी नहीं रह गया। वे कुमार कठोर स्वभाव के थे, जिस दिशा में जाते, उस दिशा में ले जाई जाने वाली भेंट लूट लेते / सोलह वर्ष की आयु होने पर हस्तिपाल के शरीर बल का ख्याल कर राजा और पुरोहित दोनों ने मिलकर सोचा-'कुमार बड़े हो गये। उनके राज्याभिषेक का समय हो गया। अब क्या करना चाहिए। फिर सोचा, अभिषिक्त होने पर और भी उद्दण्ड हो जायेंगे। उन्हें देखकर ये भी प्रवजित हो जायेंगे / इनके प्रवजित होने पर जनता उबल खड़ी होगी। अभी विचार कर लें। बाद में अभिषिक्त करेंगे।' यह सोच, दोनों ने ऋषि-वेष बनाया और भिक्षाटन करते हुए हस्तिपाल कुमार के निवास स्थान पर पहुंचे। कुमार उन्हें देखकर सन्तुष्ट हुआ, प्रसन्न हुआ। उसने पास आकर प्रणाम किया और तीन गाथायें कहीं चिरस्सं वस पस्साम ब्राह्मणं देवण्णिनं, महाजनं भारधरं पंकदंतं रजस्सिरं // 1 // चिरस्सं वत पस्साम इसिं धम्ममुणे रतं, कासायवत्थवसनं वाकचीरं पटिच्छदं // 2 // आसनं उदकं पज्जं पटिगण्हातु नो भवं, अग्घे भवन्तं पुच्छाम, अग्धं कुरुतु नो भवं // 3 // (1) मैं चिरकाल के बाद मलिन-दन्त, भस्मयुक्त, जटाधारी, भारवाही, देव-तुल्य ब्राह्मणों का दर्शन कर रहा हूँ। (2) मैं चिरकाल के बाद, धर्म-रत, काषाय-वर्ण, वल्कल चीरधारो ब्राह्मणों को देख रहा हूँ। (3) आप हमारा आसन, तथा पादोदक ग्रहण करें। हम आपसे यह पूज्य-वस्तु ग्रहण करने की प्रार्थना कर रहे हैं। आप यह पूज्य वस्तु प्रहण करें। इस प्रकार उसने उनसे एक-एक कर के बारी-बारी पूछा। तब पुरोहित बोला'तात, तू हमें क्या समझ कर ऐसा कह रहा है ?' 'हिमाललवासी ऋषिगण / '