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________________ खण्ड : 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 321 समझा। इस ब्राह्मण को यदि पुत्र नहीं मिला, तो यह मेरा विमान नष्ट कर देगा, इसे किस प्रकार पुत्र दिया जाय ? उसने चारों महाराजाओं के पास पहुँघ वह बात कही। वे बोले—'हम उसे पुत्र नहीं दे सकते / ' अट्ठाईस यक्ष-सेनापति के पास गया / उन्होंने भी वैसा ही उत्तर दिया। देवराज शक्र के पास जा कर कहा। उसने भी इसे योग्य पुत्र मिलेगा अथवा नहीं ? का विचार करते हुए चार देव-पुत्रों को देखा। वे पूर्व-जन्म में बनारस में जुलाहे हुए थे। उन्होंने जो कुछ कमाया, उसके पाँच हिस्से कर के चार हिस्से खाए और एक-एक हिस्सा इकट्ठा करके दान दिया। वे वहाँ से च्युत हो कर त्रयोत्रिश भवन में पैदा हुए। वहाँ से याम-भवन में। इस प्रकार ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर छः देव-लोकों में सम्पत्ति का उपभोग करते हुए विचरते रहे / उस समय उनकी त्रयोविंश भवन से च्युत होकर यामभवन जाने की बारी थी। शक्र ने उनके पास पहुँच, उन्हें बुलाकर कहा-'मित्रो, तुम्हें मनुष्य-लोक आना चाहिए, वहाँ एसुकारी राजा की पटरानी के गर्भ से जन्म ग्रहण करो।' वे उसका कहना सुनकर बोले-'देव, अच्छा जायेगे। लेकिन हमें राज-कुल से प्रयोजन नहीं है। हम पुरोहित के घर में जन्म ग्रहण कर, कुमार अवस्था में ही प्रवजित होंगे।' शक्र ने 'अच्छा' कहा और उनसे प्रतिज्ञा करा ली। फिर आकर वृक्ष-देवता से वह बात कही। उसने सन्तुष्ट हो शक्र को नमस्कार किया और अपने विमान के प्रति गमन किया। ___ अगले दिन पुरोहित ने भी कुछ मजबूत आदमियों को लिया और कुल्हाड़ी आदि : ले वृक्ष के नीचे पहुंचा। वहाँ जा वृक्ष की शाखा पकड़ बोला- 'हे देवता, आज मुझे याचना करते-करते सातवाँ दिन हो गया। अब तेरा अन्त समय आ पहुँचा / ' तब वृक्षदेवता ने बड़े ठाट-बाट के साथ पेड़ को तने की खोह में से निकलकर उसे मधुर-स्वर से बुलाया और कहा- 'ब्राह्मण, एक पुत्र की बात जाने दो, मैं तुम्हें चार पुत्र दूंगा।' 'मुझे पुत्र नहीं चाहिए, हमारे राजा को पुत्र दे।' 'तुम्हीं को मिलेंगे।' 'तो दो मुझे, और दो राजा को / ' 'राजा को नहीं, चारों तुम्हीं को मिलेंगे और तुमको भी वे केवल मिलेंगे ही, क्योंकि वे घर में न रहकर कुमार अवस्था में ही प्रबजित हो जायेंगे।' 'तुम पुत्र दो, उन्हें प्रव्रजित न होने देने की हमारी जिम्मेवारी है।' वृक्ष-देवता ने उसे वर दे अपने भवन में प्रवेश किया। उसके बाद से देवता का आदर-सत्कार बढ़ गया / ज्येष्ठ देव-पुत्र च्युत होकर पुरोहित की ब्राह्मणी की कोख में आया। नामकरण के दिन उसका नाम हस्तिपाल रखा गया और प्रव्रजित होने से रोके रखने के लिए उसे हाथीवानों को सौंपा गया। वह उनके पास पलने लगा। उसके पदचिह्नों पर आ पड़ने के समान दूसरा च्युत होकर रानी के गर्भ में आया। उसका भी जन्म ग्रहण करने पर अश्वपाल नाम रखा गया। वह साइसों के पास पलने लगा। तीसरे का नाम जन्म होने पर गो-पाल रखा गया। वह ग्वालों के साथ बढ़ने लगा।
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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