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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण समान ही हैं / महाभारत में भी पिता-पुत्र का एक संवाद है और उसके कई श्लोक उत्तराध्ययन के श्लोकों से अक्षरशः समान हैं। हम सर्वप्रथम तीनों परम्पराओं में प्रचलित कथावस्तु को प्रस्तुत कर उस पर ऊहापोह करेंगे / इषुकार (उत्तराध्ययन, अ० 14) ___ चित्र और सम्भूत, पूर्व-जन्म में, दो ग्वाले मित्र थे। उन्हें साधु के अनुग्रह से सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई। वे वहाँ से मर कर देवलोक में गए। वहाँ से च्युत हो कर उन्होंने क्षितिप्रतिष्ठित नगर के एक इभ्य-कुल में जन्म लिया। वे बड़े हुए। चार इभ्य-पुत्र उनके मित्र बने / उन सबने युवावस्था में काम-भोगों का उपभोग किया, फिर स्थविरों से धर्म सुन प्रव्रजित हुए। चिरकाल तक संयम का अनुपालन किया / अन्त में अनशन कर सौधर्म देवलोक के पद्मगुल्म नामक विमान में चार पल्य की स्थिति वाले देव बने / दोनों ग्वाल-पुत्रों को छोड़ कर शेष चारों मित्र वहाँ से च्युत हुए। उनमें एक कुरु जनपद के इषुकार नगर में इषुकार नाम का राजा हुआ और दूसरा उसी राजा की रानी कमलावती। तीसरा भृगु नाम का पुरोहित हुआ और चौथा भृगु पुरोहित की पत्नी यशा। बहुत काल बीता / भृगु पुरोहित के कोई पुत्र नहीं हुआ। पति-पत्नी चिन्तित रहने लगे। ____ एक बार उन दोनों ग्वाल-पुत्रों ने, जो अभी देव-भव में थे, अवधिज्ञान से जाना कि वे भृगु पुरोहित के पुत्र होंगे / वे वहाँ से चले / श्रमण का रूप बना भृगु पुरोहित के पास आए। भृगु और यशा दोनों ने वन्दना की। मुनियों ने धर्म का उपदेश दिया। भृगु-दम्पति ने श्रावक के व्रत स्वीकार किए। पुरोहित ने पूछा- "भगवन् ! हमारे कोई पुत्र होगा या नहीं ?' श्रमण युगल ने कहा- "तुम्हें दो पुत्र होंगे, किन्तु वे बाल्यावस्था में ही दीक्षित हो जाएँगे। उनकी प्रव्रज्या में तुम्हें कोई व्याघात उपस्थित नहीं करना होगा। वे दीक्षित हो कर धर्म-शासन की प्रभावना करगे।" इतना कह दोनों श्रमण वहाँ से चले गए। पुरोहित पति-पत्नी को प्रसन्नता हुई। कालान्तर में वे दोनों देव पुरोहितपत्नी के गर्भ में आए / दीक्षा के भय से पुरोहित नगर को छोड़ व्रज गाँव में जा बसा / वहाँ पुरोहित की पत्नी यशा ने दो पुत्रों को जन्म दिया। वे कुछ बड़े हुए। माता-पिता ने सोचा, ये कहीं दीक्षित न हो जाएँ, अतः एक बार उनसे कहा-"पुत्रो ! ये श्रमण सुन्दर-सुन्दर बालकों को उठा ले जाते हैं और मार कर उनका मांस खाते हैं। उनके पास तुम दोनों कभी मत जाना।" ___एक बार दोनों बालक खेलते-खेलते गाँव से बहुत दूर निकल गए। उन्होंने देखा कि कई साधु उसी मार्ग से आ रहे हैं / भयभीत हो वे एक वृक्ष पर चढ़ गए। संयोगवश साधु भी उसी वृक्ष की सघन छाया में आ बैठे। बालकों का भय बढ़ा। माता-पिता की शिक्षा स्मृति-पटल पर नाचने लगी। साधुओं ने कुछ विश्राम किया / झोली से पात्र
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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