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________________ खण्ड 2, प्रकरण :1 कथानक संक्रमण , 283 पुट्विं च इण्डिं च अणागयं च मणप्पदोसो न मे अस्थि कोइ। जक्खा हु वेयावडियं करेन्ति तम्हा हु एए निहया कुमारा // 32 // 16-18 (पृ० 276-77 पर उद्धृत) अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा तुम्भे न वि कुप्पह भूइपन्ना। तुभं तु पाए सरणं उवेमो समागया सव्वजणेण अम्हे // 33 // 16 (पृ० 277 ,,,) एक विश्लेषण इन समानताओं के अतिरिक्त इन दोनों में काफी अन्तर भी है। मातङ्ग जातक में मातङ्ग-पण्डित की कथा के अतिरिक्त एक और कथा का समावेश किया गया है। पहली कथा में चाण्डाल मातङ्ग-पंडित ब्राह्मणों को शिक्षा देकर सही मार्ग पर लाते हैं और दूसरी कथा में ब्राह्मण मातङ्ग को राजा से मरवा देते हैं। विद्वानों की मान्यता है कि यह दूसरी कथा बाद में जोड़ी गई है। __डॉ० घाटगे का अभिमत है कि जब हम जैन और बौद्ध परम्राओं में प्रचलित इन कथानों की तुलना करते हैं, तब हमें यह ज्ञात होता है कि बौद्ध-परम्परा की कथावस्तु विस्तृत है और उसका कथ्य अनेक विचारों से मिश्रित है / जैन-परम्परा की कथावस्तु बहुत सरल है और कथ्यमात्र को छूने वाली है / लेकिन एक तथ्य ऐसा है जिसके आधार पर यह माना जा सकता है कि जैन-कथावस्तु बौद्ध-कथावस्तु से प्राचीन है। मातङ्ग जातक में प्रतिपाद्य विषय के सूक्ष्म अध्ययन से यह ज्ञात हो जाता है कि ब्राह्मणों के प्रति लेखक की भावनाएं बहुत अधिक उद्धत और कटु हैं जब कि जैन-कथावस्तु में ऐसा नहीं है। बौद्धों की कथावस्तु में ब्राह्मणों को सहज धोखा देना और उन द्वारा किए गए अपराधों के लिए जूठन खाने के लिए प्रेरित करना—ये दो तथ्य उपरोक्त मान्यता को स्पष्ट कर देते हैं / ‘इन्हीं तथ्यों ने दूसरी कथा को इसी जातक में समाविष्ट करने के लिए लेखक को प्रेरित किया होगा और इस प्रकार की भावनाएं साम्प्रदायिक पक्षपातों के आधार पर आगे चल कर पनपी होंगी। उस समय ब्राह्मण जन्मना जाति के आधार पर विशेषताओं 1. Annals of the Bhandarkar Oriental Research Institute, Vol. 17 (1935, 1936) A few Parallels in Jains and Buddhist works', page 345, by A. M. Ghatage, M. A. :. This must have also led the writer to include the other story in the same Jataka. And such an attitude, must have arisen in later times as the effect of sectarian bias.
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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