________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन दूसरे दिन भोजन करने वाले आए / तब रसोइयों ने पूछा- "आप कौन हैं ?" "श्रावक / " "श्रावक के कितने व्रत होते हैं ?" "पाँच।" "शिक्षा व्रत कितने है "सात।" जिन्होंने यह उत्तर दिया उन सबको वे रसोइए सम्राट के पास ले गए। सम्राट ने अपने काकणी रत्न से उनके वक्ष पर तीन रेखाएँ खींच दीं / वे 'माहन' 'माहन' कहते थे इसलिए 'माहन' या 'ब्राह्मण' कहलाने लगे। भरत के पुत्र आदित्ययशा ने ब्राह्मणों के लिए सोने के यज्ञोपवीत बनवाए। महायशा आदि उत्तरवर्ती राजाओं ने चाँदी, सूत्र आदि के यज्ञोपवीत बनवाए / ब्राह्मण भरत द्वारा पूजित थे इसलिए दूसरे लोग भी उन्हें दान देने लगे। भरत ने उनके स्वाध्याय के लिए वेदों की रचना की। उन वेदों में श्रावक-धर्म का प्रतिपादन था। नर्वे तीर्थङ्कर सुविधिनाथ का निर्वाण होने के कुछ समय पश्चात् साधु-संघ का विच्छेद हो गया। उन ब्राह्मणों और उन वेदों का भी विच्छेद हो गया। वर्तमान के ब्राह्मण और वेद उनके बाद की सृष्टि हैं / इस प्रकार आवश्यक नियुक्तिकार ( ई० सन् 100-200 ) की कल्पना के अनुसार भरत द्वारा चिह्नित श्रावक मूल ब्राह्मण हैं और भरत द्वारा निर्मित वेद ही मूल वेद हैं। इन सबकी उत्पत्ति का आदि स्रोत जैन-परम्परा है। इस विषय में श्रीमद् भागवत के स्कंध 5, अध्याय 4 तथा स्कंध 11, अध्याय 2 द्रष्टव्य हैं / . वैदिक-वाङ्मय - डॉ. लक्ष्मण शास्त्री ने वैदिक-संस्कृति को श्रमण-संस्कृति का मूल माना है। उनका अभिमत है-"जैन तथा बौद्ध धर्म भी वैदिक-संस्कृति की ही शाखाएं हैं। यद्यपि सामान्य मनुष्य इन्हें वैदिक नहीं मानता। सामान्य मनुष्य की इस भ्रान्त धारणा का कारण है मूलतः इन शाखाओं के वेद-विरोध की कल्पना। सच तो यह है कि जैनों और बौद्धों की तीतों अंतिम कल्पनाएँ-कर्म-विपाक, संसार का बंधन और मोक्ष या मुक्ति-अन्ततोगत्वा वैदिक ही हैं / " 2 कुछ आगे लिखा है-"जैन तथा बौद्ध धर्म वेदान्त की यानि उपनिषदों की विचारधाराओं के विकसित रूप हैं।"3 कविवर दिनकर ने लिखा है- "वैदिक-धर्म पूर्ण नहीं है, इसका प्रमाण उपनिषदों १-आवश्यक नियुक्ति, गा० 361-366 ; वृत्ति पत्र 235,236 / २-बैदिक संस्कृति का विकास, पृ० 15 // ३-वही, पृ० 16 /