________________ 280 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . .. जुला भोजन ले एक दीवार के सहारे एक चबूतरे पर बैठ कर कर खाने लगे। जिस समय ध्यान दूसरी ओर था उस समय भोजन करते हुए ही उसे राजा के आदमियों ने आकर तलवार से मार डाला / वह मर कर ब्रह्मलोक में उत्पन्न हुआ। ___ इस जातक में बोधिसत्व कोण्ड (?) का दमन करने वाले हुए / वह इस पर निर्भरता (?) में ही मृत्यु को प्राप्त हुए। देवताओं ने क्रोधित हो सारे मेद-राष्ट्र पर गर्म गारे की वर्षा की और राष्ट्र को अराष्ट्र कर दिया। इसीलिए कहा गया है उपहजमाने मेझा मातङ्गस्मि यसस्सिने . सपारिसज्जो उच्छिन्नो मेज्झरनं तदा अहु // 24 // .. [ यशस्वी मातङ्ग के मारे जाने के कारण उस समय मेद-राज्य और उसकी सारी परिषद् मष्ट हो गई।] ___ शास्ता ने यह धर्म-देशना ला, 'न केवल अभी, पहले भी उदयन ने प्रव्रजितों को कष्ट ही दिया है' कह जातक का मेल बैठाया। उस समय मण्डव्य उदयन था / मातङ्गपण्डित तो मैं ही था। -जातक (चतुर्थ खण्ड ) 467 ; मातङ्ग जातक पृ० 583-167 / जैन-कथावस्तु का संक्षिप्त सार चाण्डाल मुनि का यज्ञवाट में भिक्षा के लिए जाना। ब्राह्मणों द्वारा अब्राह्मण को दान का निषेध करना / मनि की शिक्षा। ब्राह्मणों का मुनि के प्रति अशिष्ट व्यवहार / यक्ष द्वारा छात्रों को मूच्छित किया जाना। राजा की पुत्री भद्रा जो यज्ञपत्नी थी, का वहाँ आना। समस्त ब्राह्मण-कुमारों को मुनि का यथार्थ परिचय देना। मुनि की शरण ग्रहण करने की प्रेरणा देना। सोमदेव का मुनि के पास आ क्षमा-याचना कर भोजन लेने की प्रार्थना करना। मुनि द्वारा क्षमा देना, जातिवाद की अयथार्थता का ख्यापन करना, यज्ञ की यथार्थता को समझाना और कर्म-मुक्ति का मार्ग दिखाना। बौद्ध-कथावस्तु का संक्षिप्त सार वाराणसी में मंडव्य कुमार का प्रतिदिन सोलह हजार ब्राह्मणों को भोजन देना। हिमालय के आश्रम में मातङ्ग पण्डित का भिक्षा लेने आना। उसके फटे हुए और गंदे वस्त्र देख कर उसे स्थान से हटाना। मातङ्ग पण्डित का मण्डव्य को उपदेश देना। दान-क्षेत्र की यथार्थता बताना /