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________________ 260 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . अङ्ग और उपाङ्गों का अर्थ से ह्रास हुआ। उसका भी बहुत बड़ा भाग नष्ट हो गया। बारह वर्ष के इस दुर्भिक्ष के बाद श्रमण-संघ स्कन्दिलाचार्य की अध्यक्षता में मथुरा में एकत्रित हुआ / अनेक-अनेक श्रमण उसमें सम्मिलित हुए। उस समय जिन-जिन श्रमणों को जितना-जितना स्मृति में था, उसका अनुसंधान किया। इस प्रकार 'कालिक सूत्र' और 'पूर्वगत' के कुछ अंश का संकलन हुआ। मथुरा में होने के कारण उसे 'माथुरी वाचना' कहा गया / युग-प्रधान आचार्य स्कन्दिल ने उस संकलित-श्रुत के अर्थ की अनुशिष्टि दी, अतः वह अनुयोग स्कन्दिली वाचना' भी कहलाया। ___ मतान्तर के अनुसार यह भी माना जाता है कि दुर्भिक्ष के कारण किंचिद् भी श्रुत नष्ट नहीं हुआ। उस समय सारा श्रुत विद्यमान था। किन्तु आचार्य स्कन्दिल के अतिरिक्त शेष सभी अनुयोगधर मुनि काल-कवलित हो गए थे। दुर्भिक्ष का अन्त होने पर आचार्य स्कन्दिल ने मथुरा में पुन: अनुयोग का प्रवर्तन किया। इसीलिए उसे 'माथुरी वाचना' कहा गया और वह सारा अनुयोग स्कन्दिल सम्बन्धी गिना गया / ' चौथी वाचना-इसी समय ( वीर-निर्वाण सं० 827-840 ) वल्लभी में आचार्य नागार्जुन की अध्यक्षता में संघ एकत्रित हुआ। किन्तु श्रमण बीच-बीच में बहुत कुछ भूल चुके थे / श्रुत की सम्पूर्ण व्यवच्छित्ति न हो जाय इसलिए जो कुछ स्मृति में था, उसे संकलित किया / उसे 'वल्लभी वाचना' या 'नागार्जुनीय वाचना' कहा गया। पाँचवीं वाचना-वीर-निर्वाण की दसवीं शताब्दी (980 या 663) में देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में वल्लभी में पुनः श्रमण-संघ एकत्रित हुआ। स्मृति-दौर्बल्य, परावर्तन की न्यूनता, धृति का ह्रास और परम्परा की व्यवच्छित्ति आदि-आदि कारणों से श्रुत का अधिकांश भाग नष्ट हो चुका था। किन्तु एकत्रित मुनियों को अवशिष्ट श्रुत की न्यून या अविक, त्रुटित या अत्रुटित जो कुछ स्मृति थी, उसकी व्यवस्थित संकलना की गई। देवर्द्धिगणी ने अपनी बुद्धि से उसकी संयोजना कर उसे पुस्तकारूढ़ किया। माथुरी तथा वल्लभी वाचनाओं के कंठगत आगमों को एकत्रित कर उन्हें एकरूपता देने का प्रयास किया गया। भगवान् महावीर के पश्चात् एक हजार वर्षों में घटित मुख्य घटनाओं का समावेश यत्र-तत्र आगमों में किया गया। जहाँ-जहाँ समान आलापकों का बार-बार पुनरावर्तन होता था, उन्हें संक्षिप्त कर एक-दूसरे का पूर्ति-संकेत एक-दूसरे आगम में कर दिया गया। यह वाचना वल्लभी नगर में हुई, अतः इसे 'वल्लभी वाचना' कहा गया है / ... १-(क) नंदी चूर्णि, पृ० 8 / (ख) नंदी, गाथा 33, मलयगिरि वृत्ति, पत्र 51 / .
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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