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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 256 जैन आगम-वाचनाएँ वीर-निर्वाण से लगभग एक सहस्राब्दी के मध्य में आगम-संकलन की पाँच वाचनाएं हुई पहली वाचना-वीर-निर्वाण की दूसरी शताब्दी ( वी० नि० के 160 वर्ष बाद ) में पाटलिपुत्र में बारह वर्ष का भीषण दुष्काल पड़ा। उस समय श्रमण-संघ छिन्न-भिन्न हो गया। अनेक श्रुतधर काल-कवलित हो गए। अन्यान्य अनेक दुविधाओं के कारण यथावस्थित सूत्र-परावर्तन नहीं हो सका / अत: आगम-ज्ञान की शृङ्खला टूट-सी गई / दुर्भिक्ष मिटा / उस काल में विद्यमान अनेक विशिष्ट आचार्य पाटलिपुत्र में एकत्रित हुए। ग्यारह अङ्ग एकत्रित किए / उस समय बारहवे अङ्ग 'दृष्टिवाद' के एकमात्र ज्ञाता भद्रबाहु स्वामी थे और वे नेपाल में 'महाप्राण-ध्यान' की साधना कर रहे थे। संघ के विशेष निवेदन पर उन्होंने मुनि स्थूलभद्र को बारहवें अङ्ग की वाचना देना स्वीकार किया / स्थलभद्र मुनि अध्ययन में संलग्न हो गए। उन्होंने 'दस पूर्व' अर्थ सहित सीख लिए / 'ग्यारहव पूर्व की वाचना चालू थी / बहिनों को चमत्कार दिखाने के लिए उन्होंने सिंह का रूप बनाया। भद्रबाह ने इसे जान लिया। आगे वाचना बन्द कर दी। फिर विशेष आग्रह करने पर अन्तिम 'चार पूर्वो' की वाचना दी। किन्तु अर्थ नहीं बताया। अर्थ की दृष्टि से अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु हुए। स्थूलभद्र शाब्दिक-दृष्टि से चौदह-पूर्वी हुए, किन्तु आर्थी-दृष्टि से दस-पूर्वी ही रहे। ___ दूसरी वाचना-आगम-संकलन का दूसरा प्रयत्न ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के मध्य में हुआ। चक्रवर्ती खारवेल जैन-धर्म का अनन्य उपासक था। उसके सुप्रसिद्ध हाथीगुम्फा अभिलेख में यह उपलब्ध होता है कि उसने उड़ीसा के कुमारी पर्वत पर जैन-श्रमणों का एक संघ बुलाया और मौर्यकाल में जो अङ्ग उच्छिन्न हो गए थे, उन्हें उपस्थित किया। - तीसरी वाचना-आगम-संकलन का तीसरा प्रयत्न वीर-निर्वाण 827 और 840 के मध्यकाल में हुआ। उस काल में बारह वर्ष का भीषण दुष्काल पड़ा। भिक्षा मिलना अत्यन्त दुष्कर हो गया। साधु छिन्न-भिन्न हो गए। वे आहार की उचित गवेषणा में दूर-दूर देशों की ओर चल पड़े। अनेक बहुश्रुत तथा आगमधर मुनि दिवंगत हो गए। भिक्षा की उचित प्राप्ति न होने के कारण आगम का अध्ययन, अध्यापन, धारण और प्रत्यावर्तन सभी अवरुद्ध हो गए / धीरे-धीरे श्रुत का ह्रास होने लगा। अतिशायी श्रुत का नाश हुआ। 1. Journal of the Bihar and Orissa Research Society, Vol. XIII, p. 236.
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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