________________ खण्ड 1, प्रकरण :9 २-कर्मवाद और लेश्या 249 नील'- ई, कदाग्रह, छत्पस्दिता, अदिद्या, माया, निर्लजता, गृद्धि प्रद्वेष, शठता प्रमाद, रसले लुपता, मुख की गदेषणा, आरम्भ में रहना, प्रकृति की क्षुद्रता और बिना विचारे काम करना / कापोत'- वाणी की वक्रता, आचरण की वक्रता, काट, अपने दोषों को छाना, मिघ्या दृष्टि, मखोल करना, दुष्ट-वचन बोलना, चोरी करना और मात्सर्य / तेजस्३- नम्र व्यवहार करना, अचाल होना, ऋजुता, कुतूहल न करना, विनय में निपुण होना, जितेन्द्रियता, मानसिक समाधि, तपस्विता, धामिक-प्रेम, धार्मिक दृढ़ता, पाप-रुता और मुक्ति की गवेषगा। पद्म'- क्रोध, मान, माया और लोभ की अल्पता, चित्त की प्रशान्ति, आत्म-नियंत्रण, समाधि, अल्पभाषिता और जितेन्द्रियता / शुक्ल५- धर्म और शुक्ल ध्यान को लीनता, चित की प्रशान्ति, आत्म-नियंत्रण, सम्यक् प्रवृत्ति, मन, वचन और काया का संयम तथा जितेन्द्रियता / ___इस प्रसंग में गोम्मटसार जीवकाण्ड ( गाथा 508-516 ) द्रष्टव्य है / लेश्याओं के लक्षणों के साथ सत्त्व, रजम् और नमस् के लागों की आंशिक तुना होती है / शच, आस्तित्य, शुक्ल-धर्म की रुचि वाली बुद्धि -ये सत्त्वगुण के लक्षण हैं ; बहुत बोलना, मान, क्रोध, दम्भ पोर मातार्य-ये रजोगुण के लक्षग हैं और भय, अज्ञान, निद्रा, आलस्य और विषाद- ये तमोगुण के लक्षण हैं / / .1 उत्तराध्ययन, 34 / 22-24 / २-टही, 34 / 25-26 / ३-वही, 24 / 27-28 / ४-वहो; 34:29-30 / ५-वही, 34 / 13 / 6 अटांगहृदय, शरीरस्थान, 3 / 37,38: सात्विक शौचमास्तिक्यं शुधमरुचिर्मभिः / राजसं बहुभाषित्वं मानक्रुद्दम्भमत्सरम् // तासं भयमज्ञानं, निद्रालस्य विषादिता। इति भूतभयो देह'.....................॥