________________ 216 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन स्पर्श करते हैं, जिनसे यह शरीर शक्ति-हीन और विनष्ट होता है, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।"१ ___ गद्दभालि मुनि ने राजा संजय से कहा- "जबकि तू पराधीन है, इसलिए सब कुछ छोड़ कर तुझे चले जाना है, तब अनित्य जीव-लोक में तू क्यों राज्य में आसक्त हो रहा है?"२ __मृगापुत्र ने अपने माता-पिता से कहा -"यह शरीर अनित्य है, अशुचि से उत्पन्न है, आत्मा का यह अशाश्वत आवास है तथा दुःख और क्लेशों का भाजन है। "इस अशाश्वत शरीर में मुझे आनन्द नहीं मिल रहा है। इसे पहले या पीछे जब कभी छोड़ना है। यह पानी के बुलबुले के समान नश्वर है। ___ "मनुष्य जीवन असार है, व्याधि और रोगों का घर है, जरा और मरण से ग्रस्त है, इसमें मुझे एक क्षण भी आनन्द नहीं मिल रहा है।" 3. ___ इस प्रकार अनित्यवादी दृष्टिकोण धर्म की आराधना के लिए महान् प्रेरणा-स्रोत __यह कल्पना भी युक्ति से परे नहीं है कि भगवान् बुद्ध ने अनित्यता का उपदेश जनता को धर्माभिमुख करने के लिए दिया था। आगे चल कर दर्शन-काल में वही 'क्षणभंगुर वाद' नामक दार्शनिक सिद्धान्त के रूप में परिणत हो गया। अनित्यवादी दृष्टिकोण आत्मवादियों के लिए धर्म प्रेरक रहा तो परलोक में विश्वास नहीं करने वाले अनात्मवादी इससे भोग की प्रेरणा पाते रहे हैं। संसार भावना ___ धर्म की धारणा का आठवाँ हेतु रहा है-'संसार भावना' / भृगु-पुत्रों ने अपने पिता से कहा-"यह लोक पीड़ित हो रहा है, चारों ओर से घिरा हुआ है, अमोघा आ रही है / इस स्थिति में हमें मुख नहीं मिल रहा है।" ___"पुत्रो ! यह लोक किससे पीड़ित है ? किससे घिरा हुआ है ? अमोघा किसे कहा जाता है ? मैं जानने के लिए चिन्तित हूँ।" कुमार बोले- "पिता ! आप जाने कि यह लोक मृत्यु से पीड़ित है, जरा से घिरा हुआ है और रात्रि को अमोघा कहा जाता है।"५ १-उत्तराध्ययन, 10 / 1,2,26,27 / २-वही, 18 / 12 / ३-वही, 1912-14 / ४-वहां, 55,6 / ५-उत्तराध्ययन, 14 / 21-23 /