________________ 16 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन होता है / एक व्यक्ति रागात्मक चित्तत नहीं करता, यह भो मन-गुप्ति है और शुभ चिन्तन करता है, वहाँ भी मन-गुप्ति है। एक व्यक्ति रागात्मक वचन नहीं बोलता, यह भी वचन-गुप्ति है और शुभ वचन नहीं बोलता है, वहाँ भी वचन-गुप्ति है। एक व्यक्ति रागात्मक गमनागमन नहीं करता, यह भी काय-गुप्ति है, और शुभ गमनागमन करता है, वहाँ भी काय-गुति है। आत्मा और बाह्य-जगत् का सम्बन्ध विजातीय तत्त्व (पौद्गलिक द्रव्य) के माध्यम से बना हुआ है। उसके दो अंग हैं-(१) पुण्य और (2) पाप। इनका सम्बन्ध-निरोध गुप्तियों से होता है। मन-गुप्ति से चित्त की एकाग्रता प्राप्त होती है / एकाग्रता से चित्त का निरोध होता है / वचन-गुप्ति से निर्विचार दशा प्राप्त होती है। वाक् दो प्रकार का होता है-(१) अन्तर्जल्याकार और (2) बहिर्जल्लाकार / मानसिक विचारों की अभिव्यक्ति बहिर्जलाकार वाक से होती है और मानसिक चिन्तन अन्तर्जल्पाकार वाक् के आलम्बन से होता है। अतएव जब तक वचन-गुप्ति नहीं होती अर्थात् अन्तर्जल्लाकार वाक्का निरोध नहीं होता, तब तक निर्विचार दशा-मानसिक चिन्तन से मुक्त दशा या ध्यान की स्थिति प्राप्त नहीं होती।४ काय-गुति से संवर या पापाश्रवों का निरोध होता है।५ वैदिक और बौद्ध दर्शन में मन को बन्ध और मोक्ष का हेतु माना गया। जन-दर्शन उस सिद्धान्त से सर्वथा असहमति प्रकट नहीं करता तो सर्वथा सहमति भी नहीं देता। मन की चंचलता और स्थिरता का शरीर को प्रवृत्ति और अप्रवृत्ति से निकट का सम्बन्ध है / शरीर को स्थिर किए बिना श्वास को स्थिर नहीं किया जा सकता और श्वास को स्थिर किए बिना मन को स्थिर नहीं किया जा सकता। विजातीय तत्त्व का ग्रहण भी शरीर के ही द्वारा होता है, इसलिए बन्ध और मोक्ष की प्रक्रिया में मन को शान्ति और शरीर का भी बहुत महत्त्वपूर्ण योग है। __शब्द पुद्गल द्रव्य का कार्य है। स्पर्श, रस, गंध और रूप पुद्गल द्रव्य के गुण हैं / दृश्य-जगत् समूचा पौद्गलिक है / वह मनोज्ञ भी है और अमनोज्ञ भी है / मनोज्ञ के प्रति राग और अमनोज्ञ के प्रति द्वेष उत्पन्न होता है, तब आत्मा पुद्गलाभिमुख बन जाती है और पुद्गलाभिमुख आत्मा ही पुद्गलों से बद्ध होती है। श्रोत्रेन्द्रिय का निग्रह करने से मनोज्ञ शब्दों के प्रति राग-द्वेष उत्सन्न नहीं होता। चक्षु, घ्राण, रसन और स्पर्शन इन्द्रिय का निग्रह करने से मनोज्ञ रूप, गंध, रस और स्पर्श १-मूलराधना, 118788, विजयोदया वृत्ति / २-उत्तराध्ययन, 29 / 53 / ३-वही, 29 / 25 / ४-वही, 29 // 54 // ५-वही, 29 // 55