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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 7 २-योग 161 को कायोत्सर्ग कहा है। यह भी पूर्ण परिभाषा नहीं है। दोनों के योग से पूर्ण परिभाषा बनती है / कायोत्सर्ग अर्थात् कायिक ममत्व और चंचलता का विसर्जन / कायोत्सर्ग का उद्देश्य कायोत्सर्ग का मुख्य उद्देश्य है-आत्मा का काया से वियोजन / काया के साथ आत्मा का जो संयोग है, उसका मूल है प्रवृत्ति। जो इनका विसंयोग चाहता है अर्थात् आत्मा के सान्निध्य में रहना चाहता है, वह स्थान, मौन और ध्यान के द्वारा 'स्व' का व्युत्सर्ग करता है। स्थान- काया की प्रवृत्ति का स्थिरीकरण-काय-गुप्ति मौन- वाणी की प्रवृत्ति का स्थिरीकरण-वाग-गप्ति ध्यान- मन की प्रवृत्ति का स्थिरीकरण-मनो-गुप्ति / कायोत्सर्ग में श्वासोच्छ्वास जैसी सूक्ष्म प्रवृत्ति होती है। शेष प्रवृत्ति का निरोध किया जाता है। . कायोत्सर्ग की विधि और प्रकार शारीरिक अवस्थिति और मानसिक चिन्तनधारा के आधार पर कायोत्सर्ग के नौ प्रकार किए गए हैंशारीरिक अवस्थिति मानसिक चिन्तनधारा (1) उत्सृत-उत्सृत खड़ा धर्म-शक्ल ध्यान (2) उत्सत खड़ा न धर्म-शुक्ल और न आत-रौद्र किन्तु चिन्तन-शून्य दशा (3) उत्सृत-निषण्ण आर्त-रौद्र ध्यान (4) निषण्ण-उत्सत धर्म-शुक्ल ध्यान (5) निषण्ण न धर्म-शुक्ल और न आर्त्त-रौद्र किन्तु चिन्तन-शून्य दशा (6) निषण्ण-निषण्ण बैठा आर्त-रौद्र ध्यान (7) निषण्ण-उत्सृत सोया हुआ धर्म-शुक्ल ध्यान १-आवश्यक, गाथा 779, हारिभद्रीय वृत्ति : करोमि कायोत्सर्गम्-ध्यापारवतः कायस्यपरित्यागमिति भावना। २-योगशास्त्र, 3, पत्र 250 : कायस्य शरीरस्य स्थानमौनध्यानक्रियाव्यतिरेकेण अन्यत्र उच्छ्वसितादिभ्यः क्रियान्तराध्यासमधिकृत्ययउत्सर्गस्त्यागो 'नमो अरहताणं' इति वचनात् प्राक् सकायोत्सर्गः। खडा का
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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