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________________ 186 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन लिङ्ग-शुक्ल ब्यान के चार लिङ्ग (लक्षण) हैं / देखिए 'ध्यान के प्रकार' शीर्षक में / फल-धर्म्य-यान का जो फल बतलाया गया है, वह उत्कृष्ट स्थिति में पहुंच शुक्लध्यान का फल बन जाता है। इसका अंतिम फल मोक्ष है / ध्यान के व्यावहारिक फल के विषय में कुछ मतभेद मिलता है। ध्यान शतक के अनुसार ध्यान से मन, वाणी और शरीर को कष्ट होता है, वे दुर्बल होते हैं और उनका विदारण होता है / इस अभिमत से जान पड़ता है कि ध्यान से शरीर दुर्बल होता है / दूसरा अभिमत इससे भिन्न है। उसके अनुसार ध्यान से ज्ञान, विभूति, आयु, आरोग्य, सन्तुष्टि, पुष्टि और शारीरिक धैर्य-ये सब प्राप्त होते हैं।' एकान्त दृष्टि से देखने पर ये दोनों तथ्य विपरीत जान पड़ते हैं, पर इन दोनों के साथ भिन्न-भिन्न अपेक्षा जुड़ी हुई है। जिस ध्यान में श्रोती भावना या चिन्तन की अत्यन्त गहराई होती है, उससे शारीरिक कृशता हो सकती है। जिस ध्यान में आत्म-संवेदन के सिवाय शेष चिन्तन का अभाव होता है, उससे शारीरिक पुष्टि हो सकती है। ध्यान और प्राणायाम जैन आचार्य ध्यान के लिए प्राणायाम को आवश्यक नहीं मानते। उनका अभिमत है कि तीव्र प्राणायाम से मन व्याकुल होता है। मानसिक व्याकुलता से समाधि का भंग होता है / जहाँ समाधि का भंग होता है, वहाँ ध्यान नहीं हो सकता / समाधि के लिए श्वास को मंद करना आवश्यक है। श्वास और मन का गहरा सम्बन्ध है। जहाँ मन है, वहाँ श्वास है और जहाँ श्वास है, वहाँ मन है। ये दोनों क्षीर नीर की भांति परस्पर घुलेमिले हैं। मन की गति मंद होने से श्वास की और श्वास की गति मंद होने से मन की गति अपने आप मंद हो जाती है। ध्यान और समत्व समता और विषमता का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव है। शरीर सम अवस्थित होता है, तब सारा स्नायु-संस्थान ठीक काम करता है। और वह विषम रूप में स्थित होता है, तब स्नायु-संस्थान की क्रिया अव्यवस्थित हो जाती है। १-ध्यानशतक, 99 / २-तत्त्वानुशासन, 198 / / ३-महापुराण, 21165,66 ४-योगशास्त्र, 22 मनो यत्र मरुत्तत्र, मरुद् यत्र मनस्ततः / अत स्तुल्यक्रियावेतो, संवीतौ क्षीरनीरवत् //
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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