________________ 164 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन / (6) काय-क्लेश के प्रयोजन (क) शारीरिक कष्ट-सहिष्णुता का स्थिर अभ्यास / (ख) शारीरिक सुख की श्रद्धा से मुक्ति। (ग) जैन-धर्म की प्रभावना।' बाह्य-तप के परिणाम : बाह्य-तप से निम्न बातें फलित होती हैं(१) सुख की भावना स्वयं परित्यक्त हो जाती है। (2) शरीर कृश हो जाता है। (3) आत्मा संवेग में स्थापित होती है / (4) इन्द्रिय-दमन होता है। (5) समाधि-योग का स्पर्श होता है / (6) वीर्य-शक्ति का उपयोग होता है। (7) जीवन की तृष्णा विच्छिन्न होती है। (8) संक्लेश-रहित दुःख-भावना-कष्ट-सहिष्णुता का अभ्यास होता है / (6) देह, रस और सुख का प्रतिबंध नहीं रहता। (10) कषाय का निग्रह होता है। (11) विषय-भोगों के प्रति अनादर- उदासीन-भाव उत्पन्न होता है। (12) समाधि-मरण का स्थिर अभ्यास होता है / (13) आत्म-दमन होता है--आहार आदि का अनुराग क्षीण होता है / (14) आहार-निराशता--आहार की अभिलाषा के त्याग का अभ्यास होता है। (15) अगृद्धि बढ़ती है। (16) लाभ और अलाभ में सम रहने का अभ्यास सधता है / (17) ब्रह्मचर्य सिद्ध होता है। (18) निद्रा-विजय होती है। (16) ध्यान की दृढ़ता प्राप्त होती है। (20) विमुक्ति----विशिष्ट त्याग का विकास होता है / (21) दर्प का नाश होता है। (22) स्वाध्याय-योग की निर्विघ्नता प्राप्त होती है / (23) सुख-दुःख में सम रहने की स्थिति बनती है। (24) आत्मा, कुल, गण, शासन- सबकी प्रभावना होती है / (25) आलस्य त्यक्त होता है / १-तत्त्वार्थ, 9 / 20, श्रुतसागरीय वृत्ति /