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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 7 २-योग 157 आमरणभावी अनशन के लिए है। अल्पकालिक अनशन का सिद्धान्त यह है कि इन्द्रियविजय या चित-शुद्धि के लिए जब जैसी आवश्यकता हो, वैसा अनशन करे। इसकी सामान्य मर्यादा यह है कि इन्द्रिय और योग की हानि न हो तथा मन अमंगल चिन्तन न करे, तब तक तपस्या की जाए।' वह आत्म-शुद्धि के लिए है। उससे संकल्प-विकल्प या आर्तध्यान की वृद्धि नहीं होनी चाहिए / (2) अवमौदर्य यह बाह्य-तप का दूसरा प्रकार है / इसका अर्थ है 'जिस व्यक्ति की जितनी आहार मात्रा है, उससे कम खाना।' इसके पाँच प्रकार किए गए हैं (1) द्रव्य की दृष्टि से अवमोदर्य / (2) क्षेत्र की दृष्टि से अवमौदर्य / (3) काल की दृष्टि से अवमौदर्य / (4) भाव की दृष्टि से अवमौदर्य / (5) पर्यव की दृष्टि से अवमौदर्य / औपपातिक में इसका विभाजन इस प्रकार है (1) द्रव्यत: अवमौदर्य। (2) भावतः अवमौदर्य / द्रव्यतः अवमौदर्य के दो प्रकार हैं (1) उपकरण अवमौदर्य और (2) भक्त-पान अवमौदर्य / . . भक्त-पान अवमौदर्य के अनेक प्रकार हैं (1) आठ ग्रास खाने वाला अल्पाहारी होता है। (2) बारह ग्रास खाने वाला अपार्द्ध अवमौदर्य होता है / (3) सोलह ग्रास खाने वाला अर्द्ध अवमौदर्य होता है। (4) चौबीस ग्रास खाने वाला पौन अवमौदर्य होता है। (5) इकतीस ग्रास खाने वाला किंचित् ऊन अवमौदर्य होता है। यह कल्पना भोजन की पूर्ण मात्रा के आधार पर की गई है। पुरुष के आहार की १-मरणसमाधि प्रकीर्णक, 134 : सो हु तबो कायव्वो, जेण मणोऽमंगलं न चिंतेइ / जेण न इंदियाहाणी, जेण जोगा न हायंति // २-औपपातिक, सूत्र 19
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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