________________ खण्ड 1, प्रकरण : 7 .. २-योग ... 143 (1) साधारण- प्रमार्जित खम्भे आदि के सहारे निश्चल होकर खड़े रहना।' (2) सविचार- जहाँ स्थित हो, वहाँ से दूसरे स्थान में जाकर एक प्रहर, एक दिन आदि निश्चित-काल तक निश्चल होकर खड़े रहना / ' (3) सनिरुद्ध-- जहाँ स्थित हो, वहीं निश्चल होकर खड़े रहना / (4) व्युत्सर्ग- कायोत्सर्ग करना / (5) समपाद- पैरों को समश्रेणि में स्थापित कर (सटा कर) खड़े रहना।" (6) एक पाद- एक पैर पर खड़े रहना / / (7) गृद्धोड्डीन---- उड़ते हुए गीध के पंखों की भाँति बाहों को फैला कर खड़े रहना / .. . . निषीदन-स्थान-योग ___ बैठ कर किए जाने वाले स्थानों को 'निषीदन-स्थान-योग' कहा जाता है। उसके अनेक प्रकार हैं / स्थानांग में पाँच प्रकार की निषद्याएं बतलाई गई हैं १-मूलाराधना, 3 / 223, विजयोदया, वृत्ति : साधारणं-प्रमृप्टस्तंभादिक मुपाश्रित्य स्थानम् / २--वही, 3.223, विजयोदया, वृत्ति: / सविचारं-ससंक्रमं पूर्वरथानात् स्थानान्तरे गत्वा प्रहरदिवसादि परिच्छेदेना वस्थान मित्यर्थः / ३-वही, 23223, विजयोदया, वृत्ति : ___ सणिरुद्धं निश्चलमवस्थानम् / .. ४--वही, 3 / 223, विजयोदया, वृत्ति : वोसटुं-कायोत्सर्गम् / ५-वही, 3 / 223, विजयोदया वृत्ति : समपादो-समौ पादौ कृत्वा स्थानम् / ६-वही, 3 / 223, विजयोदया, वृत्ति : एकपादं-एकेन पादेन अवस्थानम् / ७-वही, 33223, विजयोदया, वृत्ति : गिद्धोलीणं-गृद्धस्योध्वगमन मिव बाहू प्रसार्यावस्थानम्। ८-स्थानांग, 5 / 400 : पंच निसिज्जाओ पं० सं०-उपकुडुती, गोदोहिता समपादपुता पलिका, अद्धपलितंका। ..-.... .... ... . .....