________________ खण्ड : 1, प्रकरण : 6 २-पार्श्व और महावीर का शासन-भेद 127 (3) रात्रि-भोजन-विरमण भगवान् पार्श्व के शासन में रात्रि-भोजन न करना व्रत नहीं था। भगवान् महावीर ने उसे व्रत की सूचि में सम्मलित कर लिया। यहाँ सूत्रकृतांग (1 / 6 / 28) का वह पद फिर स्नरणीय है-'से वारिया इथि सराइभत्त' / हरिभद्र सूरि ने इसकी चर्चा करते हुए बताया है कि भगवान् ऋषभ और भगवान् महावीर ने अपने ऋजु-जड़ और वक्र-जड़ शिष्यों की अपेक्षा से रात्रि भोजन न करने को व्रत का रूप दिया और उसे मूल गुणों की सूचि में रखा। मध्यवर्ती 22 तीर्थकरों ने उसे मूलगुण नहीं माना इसलिए उन्होंने उसे व्रत का रूप नहीं दिया।' सोमतिलक सूरि का भी यहीं अभिमत है / ' ___ हरिभद्र सूरि से पहले ही यह मान्यता प्रचलित थी। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने लिखा है कि 'रात को भोजन न करना' अहिंसा महाव्रत का संरक्षक होने के कारण समिति की भाँति उत्तर गुण है। किन्तु मुनि के लिए वह अहिंसा महाव्रत की तरह पालनीय है। इस दृष्टि से वह मूलगुण की कोटि में रखने योग्य है / श्रावक के लिए वह मूलगुण नहीं है। जो गुण साधना के आधारभूत होते हैं, उन्हें 'मौलिक' या 'मूलगुण' कहा जाता है। उनके उपकारी या सहयोगी गुणों को 'उत्तरगुण' कहा जाता है। जिनभद्रगणी ने मूलगुण की संख्या 5 और 6 दोनों प्रकार से मानी है-- (1) अहिंसा (4) ब्रह्मचर्य (2) सत्य (5) अपरिग्रह १-दशवकालिक, हारिभद्रीय वृत्ति, पत्र 150 : . एतच्च रात्रिभोजनं प्रथमचरमतीधकरतीर्थयोः ऋजुजडवक्रजडपुरुषापेक्षया मूलगुणत्वख्यापनार्थ महाव्रतोपरि पठितं, मध्यमतीर्थकरतीर्थेषु पुन: ऋजुप्रज्ञपुरुषापेक्षयोत्तरगुणवर्ग इति / २-सप्ततिशतस्थान, गाथा 287 : मूलगुणेसु उ दुण्हं, सेसाणुत्तरगुणेसु निसिभुत्तं / ३-विशेषावश्यक भाज्य, गाथा 1247 वृत्ति : उत्तरगुगत्वे सत्यपि तत् साधो मूलगुणो भण्यते / मूलगुणपालनात् प्राणातिपाता दिविरमणवत् अन्तरङ्गत्वाच्च / ४-वही, गाथा 1245-1250 / ५-विशेषावश्यक भाष्य, गाथा 1244 : सम्मत्त समेयाई, महन्वयाणुव्वयाई मूलगुणा।