________________ 126 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन था, इसलिए उन्होंने सामायिक को छेदोपस्थापनीय का रूप दिया। इस चारित्र को स्वीकार करने वाले को व्यक्ति या विभागशः महाव्रतों का स्वीकार कराया जाता है / छेद का अर्थ 'विभाग' है। भगवान महावीर ने भगवान पार्श्व के निर्विभाग सामायिकचारित्र को विभागात्मक सामायिक-चारित्र बना दिया और वही छेदोपस्थापनीय के नाम से प्रचलित हुआ। भगवान् ने चारित्र के तेरह मुख्य विभाग किए थे। पूज्यपाद ने भगवान महावीर को पूर्व तीर्थङ्करों द्वारा अनुपदिष्ट तेरह प्रकार के चारित्र-उपदेष्टा के रूप में नमस्कार किया है-- तिस्रः सत्तमगुप्तयस्तनुमनोभाषानिमित्तोदयाः, पंचेर्यादि समाश्रयाः समितयः पंच व्रतानीत्यपि / चारित्रोपहितं त्रयोदशतयं पूर्व न दिलं परै, राचारं परमेष्ठिबुनो जिनपते वीरान् नमामो वयम् // 1 यह विचित्र संयोग की बात है कि आचार्य भिक्षु ने भी तेरापंथ की व्याख्या इन्हीं तेरह ( पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति ) व्रतों के आधार पर को थी। भगवती से ज्ञात होता है कि जो चातुर्याम-धर्म का पालन करते थे, उन मुनियों के चारित्र को 'सामायिक' कहा जाता था और जो मुनि सामायिक-चारित्र की प्राचीन परम्परा को छोड़ कर पंचयाम-धर्म में प्रबजित हुए उनके चारित्र को 'छोपस्थापनीय' कहा गया / 3 भगवान् महावीर ने भगवान् पार्श्व की परम्परा का सम्मान करने अथवा अपने निरूपण के साथ उसका सामंजस्य बिठाने के लिए दोनों व्यवस्थाएं की प्रारम्भ में अल्पकालीन निर्विभाग ( सामायिक ) चारित्र को मान्यता दी,४ दीर्घकाल के लिए विभागात्मक ( छेदोपस्थापनीय ) चारित्र की व्यवस्था की। १-चारित्रभक्ति, 7 / २-भिक्षुजशरसायन, 77 : पंच महाव्रत पालता, शुद्धि सुमति सुहावै हो। तीन गुप्त तीखी तरै, भल आतम भावे हो। चित्त तूं तेरा ही चाहवै हो। ३-भगवती, 25 // 71786, गाथा 1,2 : सामाइयंमि उ कए, चाउज्जामं अणुत्तरं धम्म / तिविहेणं फासयंतो, सामाइय संजमो स खलु // . छत्तण उ परियागं, पोराणं जो ठवेइ अप्पाणं / धम्ममि पंच जामे, छेदोवट्ठावणो स खलु // ४-विशेषावश्क भाज्य, गाथा 1268 / ५-वही, गाथा 1274 /