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________________ 123 खल्ड : 1, प्रकरण : 6 २-पार्श्व और महावीर का शासन-भेद पर्युषण कल्प पर्युषण कल्प (6) पर्युषण कल्प का अनियम / (6) पर्युषण कल्प का नियम / जघन्यतः भाद्रव-शुक्ला पंचमी से कार्तिकशुक्ला पंचमी तक और उत्कृष्टतः आषाढ़ पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक एक स्थान में रहने का नियम / (10) (10) परिहार विशुद्ध चारित्र (1) चातुर्याम और पंच महाव्रत प्राग्-ऐतिहासिक काल में भगवान् ऋषभ ने पाँच महाव्रतों का उपदेश दिया था, ऐसा माना जाता है। ऐतिहासिक काल में भगवान् पार्श्व ने चातुर्याम-धर्म का उपदेश दिया था। उनके चार याम ये थे-(१) अहिंसा, (2) सत्य, (3) अचौर्य और (4) बहिस्तात् आदान-विरमण ( बाह्य-वस्तु के ग्रहण का त्याग ) / ' भगवान् महावीर ने पाँच महाव्रतों का उपदेश दिया। उनके पाँच महाव्रत ये हैं-(१) अहिंसा, (2) सत्य, (3) अचौर्य, (4) ब्रह्मचर्य आर (5) अपरिग्रह / 2 सहज ही प्रश्न होता है कि भगवान् महावीर ने महाव्रतों का विकास क्यों किया? भगवान् पार्श्व की परम्परा के आचार्य कुमारश्रमण केशी और भगवान महावोर ये गणधर गौतम जब श्रावस्ती में आए, तब उनके शिष्यों को यह संदेह उत्पन्न हुआ कि हम एक ही प्रयोजन से चल रहे हैं, फिर * यह अन्तर क्यों ? पार्श्व ने चातुर्याम-धर्म का निरूपण किया और महावीर ने पाँच महाव्रत-धर्म का, यह क्यों ? कुमारश्रमण केशी ने गौतम से यह प्रश्न पूछा तब उन्होंने केशी से कहा--"पहले तीर्थङ्कर के साधु ऋजु-जड़ होते हैं / अन्तिम तीर्थङ्कर के साधु वक्र-जड़ होते हैं। बीच के तीर्थङ्करों के साधु ऋज-प्राज्ञ होते हैं, इसलिए धर्म के दो प्रकार किए हैं। "पूर्ववर्ती साधुओं के लिए मुनि के आचार को यथावत् ग्रहण कर लेना कठिन है। चरमवर्ती साधुओं के लिए मुनि के आचार का पालन कठिन है। मध्यवर्ती साधु उसे यथावत् ग्रहण कर लेते हैं और उसका पालन भी वे सरलता से करते हैं।"४ इस समाधान में एक विशिष्ट ध्वनि है। उससे इस बात का संकेत मिलता है कि जब भगवान् पार्श्वनाथ के प्रशिष्य अब्रह्मचर्य का समर्थन करने लगे, उसका पालन कठिन १-स्थानांग, 4 / 266 / २-उत्तराध्ययन, 21 / 12 / ३-वही, 23312-13 / ४-वही, 23 / 26-27 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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