________________ खण्ड : 1, प्रकरण : 5 ७-जैन-धर्म और वैश्य 116 किया था-"ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-इन चारों वर्गों में जो धर्म फैला हुआ है, वह सिमट कर अधिकांशतया वैश्यों के हाथ में चला जाएगा।"१ पाठवें स्वप्न में उन्होंने देखा-"जुगनू प्रकाश कर रहा है / " आचार्य भद्रबाहु ने इसका फल बताया--"श्रमण-गण आर्य-मार्ग को छोड़, केवल क्रिया का घटाटोप दिखा वैश्य-वर्ग में उद्योत करेगा। फलतः निर्ग्रन्थों का पूजा-सत्कार कम हो जाएगा और बहुत लोग मिथ्यात्व रत हो जाएंगे।"२ / सम्राट का नौवाँ स्वप्न था-"सरोवर सूख गया, केवल दक्षिण-दिशा में थोड़ा जल भरा है और वह भी पूर्ण स्वच्छ नहीं।" आचार्य भद्रबाहु ने इसका फल बताया--"जिस भूमि में तीर्थङ्करों के पाँच कल्याण ( च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण ) हुए थे, वहाँ धर्म की हानि होगी और दक्षिण-पश्चिम में थोड़ा-थोड़ा धर्म रहेगा और वह भी अनेक मतवादों और पारस्परिक संघर्षों से परिपूर्ण / ' 3 भद्रबाहु की इस भविष्यवाणी में उस घटना-क्रम का अंकन है, जब जैन-धर्म एक स्थिति से दूसरी स्थिति में संक्रान्त हो रहा था। जैन-श्रमण मतभेदों को प्रधानता दे रहे थे ; जैन-श्रावक प्रत्यक्ष जीव-वध की तुलना में मानसिक हिंसा को कम आंक रहे थे और जैन-शासन एक जाति के रूप में संगठित हो रहा था। १-व्यवहार चूलिका : उत्तमे उक्करडियाए कमलं उग्गय टुिं, तस्स फलं तेणं माहण खत्तिय वइस्स सुद्दे चउण्हं वण्णाणं मज्झे वइस्स हत्थे धम्मं भविस्सइ / २-वही : अट्ठमे खज्जुओ उज्जोयं करेइ / तेणं समणा आरियमगं मोत्तण खज्जुया इव किरियाए फडाडोवं दंसिऊण वइस्स वण्णे उज्जोयं करिस्संति / तेण समणाणं णिगंथाणं पूयासक्कारे थोवे भविस्सई, बहुजणा मिच्छत्तरागिणो भविस्संति / ३-वही: णवमे सुक्कं सरोवरं दाहिणदिसाए थोवं जलभरियं गडुलियं दिटुं, तस्स फलं तेणं जत्थ जत्थ भूमिए पंच जिणकलाणं तत्थ देशे धम्महाणी भविस्सइ दाहिणपच्छिमए किंपि किंपि धम्मं बहुमइडोहलियं भविस्सइ /