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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 5 ५-जैन-धर्म हिन्दुस्तान के विविध अंचलों में 106 पहाड़पुर के लेख (गु० स० 156) में जन विहार में तीर्थङ्कर की पूजा निमित्त भूमिदान का विवरण है, जिसकी आय गंध, धूप, दीप, नैवेद्य के लिए व्यय की जाती थी विहारे भगवतां अर्हतां गंधधूपसुमनदीपाद्यर्थम् / / ईसा की चौथी शताब्दी में आचार्य स्कन्दिल के नेतृत्व में 'मथुरा' में जैन-आगमों की द्वितीय वाचना हुई थी।२ चम्पा ___ कौशाम्बी की राजधानी चम्मा भी जैन-धर्म का प्रमुख केन्द्र थी / श्रुतकेवली शय्यंभव ने दशवकालिक की रचना वहीं की थी। राजस्थान भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् मरुस्थल ( वर्तमान राजस्थान ) में जैन-धर्म का प्रभाव बढ़ गया था। पंडित गौरीशंकर ओझा को अजमेर के पास वडली ग्राम में एक बहुत प्राचीन शिलालेख मिला था। वह वीर निर्वाण सम्वत् 84 (ई० पू० 443) में लिखा हुआ था वीराय भगवत, चत्तुरसीति वसे, मामामिके... आचार्य रत्नप्रभ सूरि वीर निर्वाण की पहली शताब्दी में उपकेश या ओसिया में आए थे। उन्होंने वहाँ ओसिया के सवालाख नागरिकों को जैन-धर्म में दीक्षित किया और उन्हें एक जैन-जाति (ओसवाल) के रूप में परिवर्तित कर दिया। यह घटना वीर निर्वाण के 70 वर्ष बाद के आसपास की है। ___"पूर्व मध्ययुग में राजपूताना के विस्तृत क्षेत्र में भी जैन-मत का पर्याप्त प्रचार था, जिसका परिज्ञान अनेक प्रशस्तियों के अध्ययन से हो जाता है। चहमान लेख में राजा को जैन-धर्म परायण कहा गया है तथा तीर्थङ्कर शांतिनाथ की पूजा निमित्त आठ द्रम (सिक्के) के दान का वर्णन है। तैलप नामक राजा के पितामह द्वारा जैन मंदिर के निर्माण का भी वर्णन मिलता है ... पितामहेनतस्येदं शमीयाट्यां जिनालये कारितं शांतिनाथस्य बिम्बं जनमनोहरम् / १-प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन, पृ० 125 / २-नंदी, मलय गिरि वृत्ति, पत्र 51 / ३-दशवैकालिक, हारिभद्रीय वृत्ति, पत्र 11 / ४-जर्नल ऑफ दी बिहार एण्ड ओरिस्सा रिसर्च सोसाइटी, ई० स० 1930 / ५-पट्टावलि समुच्चय, पृ० 185-186 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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