________________ खण्ड 1, प्रकरण : 5 ५-जैन-धर्म हिन्दुस्तान के विविध अंचलों में 105 यद्यपि मगध में ही उत्पन्न हुए तथापि इनका प्रचार और विलक्षण प्रसार बंग देश में ही हुआ। इस दृष्टि से बंगाल और मगध एक ही स्थल पर अभिषिक्त माने जा सकते हैं। "बंगाल में कभी बौद्ध-धर्म को बाढ़ आई थी, किन्तु उससे पूर्व यहाँ जैन-धर्म का ही विशेष प्रसार था। हमारे प्राचीन धर्म के जो निदर्शन हमें मिलते हैं, वे सभी जैन हैं। इसके बाद आया बौद्ध-युग / वैदिक-धर्म के पुनरुत्थान की लहरें भी यहाँ आकर टकराई, किन्तु इस मतवाद में भी कट्टर कुमारिलभट्ट को स्थान नहीं मिला। इस प्रदेश में वैदिक मत के अन्तर्गत प्रभाकर को ही प्रधानता मिली और प्रभाकर थे स्वाधीन विचारधारा के पोषक तया समर्थक। जैनों के तीर्थङ्करों के पश्चात् चार श्रुतकेवली आए। इनमें चौथे श्रुतकेवली थे भद्रबाहु / _...ये भद्रबाहु चन्द्रगुप्त के गुरु थे। उनके समय में एक बार बारह वर्ष व्यापी अकाल की सम्भावना दिखाई दी थी। उस समय वे एक बड़े संघ के साथ बंगाल को छोड़ कर दक्षिग चले गए और फिर वहीं रह गए। वहीं उन्होंने देह त्यागी / दक्षिण का यह प्रसिद्ध जैन-महातीर्थ 'श्रवणबेलगोला' के नाम से प्रसिद्ध है / दुर्भिक्ष के समय इतने बड़े संघ को लेकर देश में रहते से गृहस्यों पर बहुत बड़ा भार पड़ेगा, इसी विचार से भद्रबाह ने देशपरित्याग किया था। "भद्रबाहु की जन्मभूमि थी बंगाल। यह कोई मनगढन्त कल्पना नहीं है। हरिसेन कृत बृहत्या में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। रत्लनन्दी गुजरात के निवासी थे, उन्होंने भी भद्रबाहु के सम्बन्ध में यही लिखा है। तत्कालीन बंग देश का जो वर्णन रत्ननन्दी ने किया है, इसकी तुलना नहीं मिलती। ___ "इनके अनुसार भद्रबाहु का जन्म-स्थान पुंडवर्धन के अन्तर्गत कोटवर्ष नाम का ग्राम था। ये दोनों स्थान आज बाँकुड़ा और दिनाजपुर जिलों में पड़ते हैं। इन सब स्थानों में जैन-मत की कितनी प्रतिष्ठा हुई थी, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वहाँ से राठ ओर तामलुक तक सारा इलाका जैन-धर्म से प्लावित था। उत्तर बंग, पूर्व बंग, .मेदनोपुर, राठ और मानभूम जिले में बहुत सी मूर्तियाँ मिलती हैं। मानभूम के अन्तर्गत पातकूम स्थान में भी जन-मूर्तियाँ मिली हैं, सुन्दर वन के जङ्गलों में भी धरती के नीचे से कई मूर्तियाँ संग्रहीत की गई हैं / बाँकुड़ा जिला को सराक जाति उस समय जैन-श्रावक शब्द के द्वारा परिचित थी। इस प्रकार बंगाल किसी समय जैन-धर्म का एक प्रधान क्षेत्र था। जब बौद्ध-धर्म आया, तब उस युग के अनेकों पण्डितों ने उसे जैन-धर्म की एक शाखा के रूप में ही ग्रहण किया था। ____"इन जैन साधुओं के अनेक संघ और गच्छ हैं। इन्हें हम साधक-सम्प्रदाय या मण्डली कह सकते हैं। बंगाल में इस प्रकार की अनेक मण्डलियाँ थीं। पुण्ड्रवर्धन और कोटिवर्ष