________________ १०-चूलिका - चूलिका का अर्थ शिखा या चोटी है। छोटी चूला ( चूड़ा ) को चूलिका कहा जाता है / यह इसका सामान्य शब्दार्थ है। साहित्य के क्षेत्र में इसका अर्थ मूल शास्त्र का उत्तर-भाग होता है। इसलिए चूलिका द्वय को 'दशवैकालिक' का 'उत्तर-तंत्र' कहा गया है / 2 तंत्र, सूत्र और ग्रन्थ ये एकार्थक शब्द हैं। आजकल सम्पादन में जो स्थान परिशिष्ट का है, वही स्थान प्राचीन काल में चूलिका का रहा है। मूल सूत्र में अवर्णित अर्थ का और वर्णित अर्थ का स्पष्टीकरण करना इसकी रचना का प्रयोजन है। अगस्त्यसिंह ने इसकी व्याख्या में इसे उक्त और अनुक्त दोनों प्रकार के अर्थों का संग्राहक लिखा है।५ टीकाकार ने संग्रहणी का अर्थ किया है-शास्त्र में उक्त और अनुक्त अर्थ का संक्षेप / शीलाङ्क सूरि चूलिका को अग्र बतलाते हैं / अग्न का अर्थ वही है जो 'उत्तर' १-अगस्त्य चूर्णि : अप्पाचूला चूलिया। २-(क) अगस्त्य चूर्णि : तं पुण चूलिका दुतं उत्तर तंतं जधा आयारस्स पंचचूला उत्तरमिति जं उवरिसत्थस्स। (ख) जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 349 : तं पुण चूलियदुगं उत्तरं तंतं नायव्वं, जहा आयारस्स उत्तरं तंतं पंच चूलाओ, ___ एवं दसवेयालियस्स दोण्णि चूलाओ उत्तरं तंतं भवइ / ३-जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 349 : . तंतंति वा सुत्तो 'त्ति वा गंथो त्ति वा एगट्ठा। ४-दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 359 : तं पुण उत्तरतंतं सुअगहिअत्थं तु संगहणी // ५-अगस्त्य चूणि : जं अवण्णितोव संगहत्थं सुतगहितत्थं—सुते जे गहिता अत्था तेसिं कस्सति फुडीकरणत्थं संगहणी। ६-हारिभद्रीय टीका, पत्र 269 : संग्रहणी तदुक्तानुक्तार्थसंक्षेपः / ७-आचारांग 21 वृत्ति, पत्र 289 : अनभिहितार्थाभिधानाय संक्षेपोक्तस्य च प्रपञ्चाय तवनभूताश्चतस्रश्चूडा उक्तानुक्तार्थसंग्राहिकाः प्रतिपाद्यन्ते /