SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन क्रम प्राप्त होता है। पाँच महाव्रत मूल गुण हैं। उनकी सुरक्षा के लिए उनके बाद उत्तर गुण बतलाए गए हैं / ' पिण्डषणा के लिए जाने पर आचार के बारे में पूछा जा सकता है। आचार-निरूपण के लिए वचन-विभक्ति का ज्ञान आवश्यक है। वचन का विवेक आचार में प्रणिहित ( समाधियुक्त ) भिक्षु के ही हो सकता है। आचार में जो प्रणिहित होता है, वह विनययुक्त ही होता है—यह छठे से नवें तक का क्रम है। पूर्ववर्ती अध्ययनों में वर्णित गुणों से सम्पन्न व्यक्ति ही भिक्षु होता है, इसलिए सबके अन्त में 'सभिक्षु' अध्ययन है / 2 कर्मवश संयम में अस्थिर बने भिक्षु का पुनः स्थिरीकरण और उसका फल ये दो चूलिकाओं का क्रम है। इस प्रकार यह आगम 'धर्म उत्कृष्ट मंगल है' ( धम्मो मंगलमुक्किट्ठ-११) इस वाक्य से शुरू होता है और 'धर्म से सुरक्षित आत्मा सब दुःखों से मुक्त हो जाता है' ( सुरक्खिओ सव्वदुहाण मुच्चइ-चूलिका 2 / 16 ) इस वाक्य में पूर्ण होता है। १-अगस्त्य चूर्णि : तदणु धम्मे धितिमतो आयारट्टियस्स छक्कायदयापरस्स णासरीरो धम्मो भवति, पहाणं च सरीरधारणं पिंडोत्ति पिंडेसणावसरो। अहवा छज्जीवणियाए पंचमहन्वया भणिता ते मूलगुणा, उत्तरगुणा पिंडेसणा, कहं ? "पिंडस्स जा 'विसोधी०" ( व्य० भा० उ० गा०२८९) अतो छज्जीवणिकायाणंतरं पिंडेसणा पाणातिवातरक्खणं ताव . "उदओल्लेण हत्थेण दव्वीए भायणे" (अ०५, उ०१, गा०३३ ) एवमादि, मुसावदे "तबतेग वतितेण" ( अ०५, उ०२, गा०४४ ) अदिण्ण दागे "कवाडं णो पणोल्लेज्जा, ओग्गहंसे अजातिया" ( अ०५, उ०१, गा०१८ ) मेहुगे “ण चरेज वेससामंते" ( अ०५, उ०१, गा०९) पंचमे "अमुच्छितो भोयणम्मी" ( अ०५, उ०२, गा० 25 ) मुच्छा परिग्गहो सो निवारिज्जति। २-वही : सभिक्खुयं न केवल मणंतरेण णवहिं वि अज्झयणेहिं अभिसंबज्झति, कहं ? जो धम्मे धितिसंपण्णे आयारत्यो छक्कायदयावरो एसणासुद्धभोगी आयारकहणसमत्थो विचारियविसुद्धवक्को आयारेपणिहितो विणयसमाहियप्पा सभिक्खुत्ति सभिक्खुयं /
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy