________________ 1. बहिरङ्ग परिचय : व्याकरण-विमर्श 26 ६-लिङ्ग पंचनिग्गहणा धीरा (3 / 11) निग्गहणा' इसमें ल्युट (अनट ) प्रत्यय कर्ता में हुआ है, अतः यह पुल्लिङ्ग है। लिङ्ग-व्यत्ययजेण (8 / 47) यहाँ स्त्रीलिङ्ग 'यया' के स्थान पर पुल्लिङ्ग 'येन' है / मयाणि सव्वाणि (10 / 19) यहाँ पुल्लिङ्ग के स्थान पर नपुसंक लिङ्ग है। ७-क्रिया और अर्द्धक्रिया लज्मामो' "उवहम्मई (1 / 4) यहाँ पहली क्रिया का प्रयोग भविष्यत् काल और दूसरी का वर्तमान काल में किया गया है। उससे उस त्रैकालिक नियम की सूचना दी गई है कि मुनि को सर्वदा यथाकृत भोजन लेना चाहिए / अइवाएज्जा (4 सू०११) प्राकृत शैली के आधार पर टीकाकार ने यहाँ पुरुष का व्यत्यय माना है-प्रथमपुरुष के स्थान में उत्तमपुरुष माना है / मुंजमाणाणं (5 / 1 / 38) भुंज् धातु के दो अर्थ हैं-पालना और खाना। प्राकृत में धातुओं के परस्मै और आत्मने पद की व्यवस्था नहीं है, इसलिए संस्कृत में 'भुंजमाणाण' शब्द के संस्कृत रूपान्तर दो बनते हैं:-(१) मुंजतोः' और (2) 'भुंजानयोः' / १-हारिभद्रीय टीका, पत्र 119 : कर्तरि ल्युट्। २-वही, पत्र 72 : वर्तमानष्यत्कालोपन्यासस्त्रैकालिकन्यायप्रदर्शनार्थः / ३-वही, पत्र 145 : प्राकृतशैल्या छान्दसत्वात् 'तिडां तिङो भवन्तीति न्यायात् नैव स्वयं प्राणिनः अतिपातयामि।