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________________ ४-व्याकरण-विमर्श आगमिक प्रयोगों को व्याकरण की कसौटी से कसा जाय तो वे सब के सब खरे नहीं उतरेंगे / इसीलिए प्राकृत-व्याकरणकारों ने आगम के अलाक्षणिक प्रयोगों को आर्ष-प्रयोग कहा है / ' प्रस्तुत आगम में अनेक अलाक्षणिक प्रयोग हैं। परन्तु एक अक्षम्य भूल से बचने के लिए हमें एक महत्त्वपूर्ण विषय पर ध्यान देने की आवश्यकता है / वह यह है कि उत्तर-कालीन व्याकरण की कसौटी से पूर्ववर्ती प्रयोगों को कसने की मनोवृत्ति निर्दोष नहीं है / भाषा का प्रवाह और उसके प्रयोग कालपरिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तित होते रहते हैं। उन्हें कोई भी एक व्याकरण बांध नहीं सकता / आगमिक प्रयोगों का मुख्य आधार पूर्वान्तर्गत शब्द-शास्त्र रहा है। उसके कुछ एक संकेत आज भी आगमों में मिलते हैं। स्थानांग में शुद्ध-वचन-अनुयोग के दस प्रकार बतलाए हैं। उन पर ध्यान देने से पता चलता है कि जिन आगमिक प्रयोगों को उत्तरकालीन व्याकरण की दृष्टि से अलाक्षणिक प्रयोग कहते हैं. उन्हें आगमकार शद्ध-वाकअनुयोग कहते हैं। 'वत्थगन्धमलंकार' (२।२)की व्याख्या में हरिभद्र सूरि ने 'मलंकार' के 'म' को अलाक्षणिक माना है। किन्तु मकरानुयोग की दृष्टि से यह प्रयोग आगमिक व्याकरण या तात्कालिक प्रयोग-परिपाटी से सम्मत है, इसलिए अलाक्षणिक नहीं है।' इसी प्रकार विभक्ति और वचन का संक्रमण भी सम्मत है।५ पाणिनि और हेमचन्द्र ने इस व्यत्यय को अपने व्याकरणों में भी स्थान दिया है।६ आगमिक प्रयोगों में विभक्ति रहित भी प्रयोग मिलते हैं---'गिण्हाहि साहुगुण मुंचऽसाहू" ( ६।३।११)—यहाँ गुण शब्द १-हेमशब्दानुशासन, आर्षम् 8 / 1 / 3 २-स्थानांग, 101744 : दसविधे सुद्धवाताणुओगे पन्नत्ते तंजहा—चंकारे (1), मंकारे (2), पिंकारे (3), सेतंकारे (4), सातंकारे (5), एगत्ते (6), पुधत्ते (7), संजूहे (8), संका मिते (9), मिन्ने (10) / ३-हारिभद्रीय टीका, पत्र 91 : अनुस्वारोऽलाक्षणिकः / ४-स्थानांग, 10744 / ५-दशवकालिक, भाग 2 ( मूल, सार्थ, सटिप्पण ) पृष्ठ २७,टिप्पण 11 / ६-हेमशब्दानुशासन, 8 / 4 / 447 : बन्धोन्धाः।
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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