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________________ दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन निर्यहण या लघुकरण : प्रस्तुत आगम के कर्ता शय्यम्भव सूरि माने जाते हैं।' नियुक्तिकार के अनुसार यह उनकी स्वतंत्र रचना नहीं, किन्तु संकलना है। संकलना के बारे में दो विचार मिलते हैं। पहले के अनुसार प्रस्तुत सूत्र का विषय पूर्वो से उद्धृत कर संकलित किया गया है / 2 दूसरी धारणा के अनुसार यह द्वादशांगी से उद्धृत हुआ है। इन दोनों विचारधाराओं के स्रोत की जानकारी का कोई साधन प्राप्त नहीं है। नियुक्ति में इन दोनों का उल्लेख है और शेष व्याख्याकारों ने उसी का अनुगमन किया है। शय्यम्भव सूरि 'चतुर्दश पूर्वधर थे, इसलिए उनकी रचना को आगम माना जाता है। जयाचार्य के अनुसार चतुर्दशपूर्वी और दशपूर्वी की वही रचना आगम हो सकती है, जो केवलज्ञानी के समक्ष की जाए। इसके आधार पर उनकी कल्पना यह है कि पूर्वो के आधार पर रचित दशवैकालिक का बृहत् कलेवर था, उसका शय्यम्भव सूरि ने लघुकरण किया है। इस कल्पना का कोई स्पष्ट साहित्यिक आधार प्राप्त नहीं है। किन्तु दशवकालिक के नियत और . अनियत रूप की चर्चा से उक्त कल्पना की पुष्टि होती है। भगवान् महावीर के चौदह १-दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 14 : सेज्जभवं गणधरं जिणपडिमादसणेण पडिबुद्धं / मणगपिअरं दसका लियस्स निज्जूहगं वंदे // २-वही, गाथा 16,17 : आयप्पवायपुवा निज्जूढा होइ धम्मपन्नती।' कम्मप्पवायपुव्वा पिंडस्स उ एसणा तिविहा // सच्चप्पवाय पुव्वा निज्जूढा होइ वक्कसुद्धी' उ / अवसेसा निज्जूढा नवमस्स उ तइयवत्यूओ // ३—वही, गाथा 18: (क) बीओऽवि अ आएसो गणिपिडगाओ दुवालसंगाओ। ___ एवं किर णिज्जूढं मणगस्स अणुग्गहट्टाए // (ख) अगस्त्य चूर्णि: बितियादेसो बारसंगातो जं जतो अगुरूवं / ४–प्रश्नोत्तर-तत्त्वबोध, 1939,10 / ५-(क) वही, 8 / 21,22 / (ख) भगवती की जोड़, 25 // 3 ढाल 438 का वार्तिक / '
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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