________________ .. 1. बहिरङ्ग परिचय : जन आगम और दशवकालिक 11 इनमें 'दसवेयालिय' और 'दसकालिय' प्रसिद्ध नाम हैं और जहाँ तक हम जानते हैं 'दसवेतालिय' का प्रयोग अगस्त्यसिंह मुनि के सिवाय अन्य किसी ने नहीं किया है / नियुक्तिकार ने स्थान-स्थान पर 'दसकालिय' शब्द का प्रयोग किया है। और कहीं-कहीं 'दसवेयालिय' का भी / 2 जिनदास महत्तर ने केवल 'दसवेयालिय' शब्द की व्याख्या की है। हरिभद्र सूरि ने 'दशकालिक' और 'दशवैकालिक' इन दोनों शब्दों का उल्लेख किया है। प्रश्न यह होता है कि आगमकार ने इसका नामकरण किया या नहीं ? यदि किया तो क्या ? मूल आगम में 'दशवकालिक' या 'दशकालिक' नाम का उल्लेख नहीं है। इसकी रचना तात्कालिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुई थी। मनक के देहावसान के बाद शय्यम्भव इसे जहाँ से उद्धत किया, वहीं अन्तर्निविष्ट कर देना चाहते थे। इसलिए सम्भव है, रचना के लिए कोई नाम न रखा हो। जब इसे स्थिर रूप दिया गया, तब आगमकार के द्वारा ही इसका नामकरण किया जाना सम्भव है। उपयोगिता और स्थापना : मनक ने छह मास में दशवकालिक पढ़ा और वह समाधिपूर्वक इस संसार से चल बसा। वह श्रुत और चारित्र की सम्यक् आराधना कर सका, इसका आचार्य को हर्ष हुआ। आँखों में आनन्द के आँसू छलक पड़े। यशोभद्र ( जो उनके प्रधान शिष्य थे ) ने बड़े आश्चर्य के साथ आचार्य को देखा और विनयावनत हो इसका कारण पूछा / आचार्य ने कहा- "मनक मेरा संसारपक्षीय पुत्र था, इसलिए कुछ स्नेह-भाव उमड़ आया। वह आराधक हुआ, यह सोच मन आनन्द से भर गया। मनक की आराधना के लिए मैंने इस आगम ( दशवैकालिक ) का निर्वृहण किया। वह आराधक हो गया। अब इसका क्या किया जाय?' आचार्य के द्वारा प्रस्तुत प्रश्न पर संघ ने विचार किया और आखिर यही निर्णय हुआ कि इसे यथावत् रखा जाय / यह मनक जैसे अनेक मुनियों की आराधना १-दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 1,7,12,14,15 / २-वही, गाथा 6 / ३-जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 5 / ४-दश० हारिभद्रीय टीका, पत्र 12 /