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________________ 5. व्याख्या ग्रन्थों के सन्दर्भ में : सभ्यता और संस्कृति 225 पशु: तीन वर्ष के बछड़े को 'गोरहग' कहा जाता था तथा रथ की भाँति दौड़ने वाला बैल, जो रथ में जुत गया वह बैल और पाण्डु-मथुरा आदि में होने वाले बछड़ों को गोरहग कहा जाता था। इसका अर्थ कल्होड़ भी किया गया है। कल्होड़ देशी शब्द है। इसका अर्थ है वत्सतर-बछड़े से आगे की और संभोग में प्रवृत्त होने के पहले की अवस्था। हाथी, घोड़े, बैल, भैंस आदि को जौ आदि का भोजन दिया जाता था और कहींकहीं ये अलंकृत भी किए जाते थे।५, राजाओं के हाथी घोड़ों के लिए भोजन, अलंकार, आवास आदि की विशेष व्यवस्था होती थी / 6. पक्खली (?) देश में अच्छे घोड़े मिलते थे। महामद्द (?) और दीलवालिया (?) इन दो जातियों के संयोग से खच्चर पैदा होते थे। घोटग अश्व की एक जाति थी। यह आर्जव जाति के घोड़ों से उत्पन्न मानी जाती थी। ___ मछलियों को वडिश से पकड़ा जाता था। उसकी नोक पर तीक्ष्ण लोह की कील .१-सूत्रकृतांग, 1 / 4 / 2 / 13 : 'गोरहगं' त्रिहायणं बलिवर्दम्। २-अगस्त्य चूर्णि: गो जोग्गा रहा गोरह जोगत्तगेण गच्छन्ति गोरहगा पण्डु-मयुरादीसु किसोर सरिसा गोपोतलगा। ३-हारिभद्रीय टीका, पत्र 217 : गोरथकाः कल्होडाः। ४-देशीनाममाला 2 / 9, पृ० 59 : ____ कल्होडो बच्छयरे-कल्होडो वत्सतरः / ५-जिनदास चू णि, पृ० 311 / ६-हारिभद्रीय टीका, पत्र 248 / ७-जिनदास चर्णि, पृ० 212-213 : - आसो नाम जच्चस्सा जे पक्खलि विसयादिसु भवन्ति, अस्सतरो नाम जे विजातिजाया जहा महामद्दएण दीलवालियाए, जे पुण अज्जवजातिजाता ते घोडगा भवंति।
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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