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________________ 216 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन को आराम देने वाला-त्वक सुख / (4) रोओं को आराम देने वाला-रोम-सुख / शिरोरोग से बचने के लिए धूम्र-पान किया जाता था। धूम्रपान करने की नली को 'घूमनेत्र' कहा जाता था। शरीर, अन्न और वस्त्रको सुवासित करने के लिये धूम्र का प्रयोग करते थे। रोग की आशंका से बचने के लिए भी धूम्र का प्रयोग किया जाता था।' बल और रूप को बढ़ाने के लिए वमन, वस्तिकर्म और विरेचन का प्रयोग होता था। वस्ति का अर्थ है, दृत्ति दृत्ति से अधिष्ठान (मल-द्वार) में घी आदि दिया जाता था। उपासना: पंचांग नमस्कार की विधि प्रचलित थी। जब कोई गुरु के समक्ष जाता तब वह दोनों जानु को भूमि पर टिका, दोनों जोड़े हुए हाथों को भूमि पर रख उनपर अपना शिर टिकाता है / यह वन्दन-विधि सर्वत्र मान्य थी। : यज्ञ : आहिताग्नि ब्राह्मण अनेक प्रकार से मंत्रों का उच्चारण कर अग्नि में घृत की आहुति देते थे। वे निरन्तर उस घृत-सिक्त अग्नि को प्रज्वलित रखते और उसकी सतत सेवा करते थे। अग्नि में वसा, रुधिर और मधु की भी आहुति दी जाती थी।" दण्डविधि: दास-दासी या नौकर-चाकर जब कोई अपराध कर लेते तब उन्हें विविध प्रकार से दण्डित किया जाता था। कुछ एक अपराधों पर इन्हें लाठी से पीटा जाता, कभी भाले आदि शस्त्रों से आहत किया जाता और कभी केवल कठोर शब्दों में उपालम्भ मात्र ही दिया जाता था। भोजन-पानी का विच्छेद करना भी दण्ड के अन्तर्गत आता था। कई अपराधों पर भोजन-पानी का विच्छेद करते हुए कहा. जाता—“इसे एक बार ही भोजन १-(क)दशवकालिक, 3 / 9 / (ख) जिनदास चूर्णि, पृ० 115 ; हारिभद्रीय टीका, पत्र 118 / २-जिनदास चूर्णि, पृ० 115 / ३-वही, पृ० 306 : पंचगीएण वंदणिएण तंजहा-जाणुदुर्ग भूमीए निवडिएण हत्थदुएण भूमीए अवटुंभिय ततो सिरं पंचमं निवाएज्जा। ४-(क) दशवैकालिक, 9 / 1 / 11 / (ख) जिनदास चूर्णि, पृ० 306 / ५-जिनदास चूर्णि, पृ० 363 : / ...वसारु हिरमहुघयाइहिं हूयमाणो /
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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