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________________ ___5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : सभ्यता और संस्कृति 215 विश्वास: वैदिक परम्परा में विश्वास रखने वाले लोग बादल, आकाश और राजा को देव मानते थे और उनकी उस विधि से पूजा भी करते थे / ' वृक्ष-पूजा का प्रचलन था। रोग और चिकित्सा : शारीरिक वेगों को रोकने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। मूत्र का वेग रोकने से चक्षु की ज्योति का नाश होता है / मल का वेग रोकने से जीवनी-शक्ति का नाश होता है। ऊर्ध्व वायु रोकने से कुष्ठ रोग उत्पन्न होता है और वीर्य का वेग रोकने से पुरुषत्व की हानि होती है। वमन को रोकने से वल्गुली या कोढ़ भी उत्पन्न हो जाता है। सहस्र पाक आदि पकाए हुए तेल अनेक रोगों में काम आते थे। नक्षत्रों के आधार पर शुभ-अशुभ बताने वाले, स्वप्न-शास्त्री, वशीकरण के पार गामी, अतीत-अनागत और वर्तमान को बताने वाले नैमित्तिक तथा यांत्रिक सर्वत्र पाए जाते थे। लोगों का इनमें बहुत विश्वास था। सर्प, बिच्छू आदि के काटने पर मंत्रों का प्रयोग होता था / 5 अन्यान्य विषों को उतारने के लिए तथा अनेक शारीरिक पीड़ाओं के उपशमन के लिए मंत्रों का प्रयोग होता था / 6 ___ संबाधन-पद्धति बहुत विकसित थी। अनेक व्यक्ति उसमें शिक्षा प्राप्त करते थे और गाँव-गाँव में घूमा करते थे। संबाधन चार प्रकार से किया जाता था - (1) हड्डियों को आराम देने वाला-अस्थिसुख। (2) मांस को आराम देने वाला-मांस-सुख / (3) चमड़ी १.-दशवैकालिक, 752 २-अगस्त्य चूर्णि: मुत्तनिरोहे च, वच्चनिरोहे य जीवियं चयति / उड्ढं निरोहे कोढं, सुक्कनिरोहे भवइ अपुमं // ३-जिनदास चूर्णि, पृ० 354,355 : अब्भवहरिऊग मुहेण उम्गिसियं वंतं तस्स पडिपीयणं ण तहा विहियं भवति, - तं अतीव रसे न बलं, न उच्छाहकारी, विलीगतया य पडिएति, वगुलिं वा जणयति ततो कोढं वा जणयति / ४-वही, पृ० 259 / ५-दशवैकालिक, 8.51 तथा हारिभद्रीय टीका, पत्र 236 / ६-जिनदास चूर्णि, पृ० 340 / ७-वही, पृ० 113 /
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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