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________________ 5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : सभ्यता और संस्कृति 213 कमल कन्द, पलाशकन्द, पद्म-नाल, सरसों की नाल, कुमुद-नाल, उत्पल-नाल आदि-आदि अपक्व खाए जाए जाते थे।' सरसों की नाल शीत-काल में उष्ण होती है-यह मानकर लोग उसे कच्ची खा लेते थे। भोजन को नमी तथा जीव-जन्तुओं से बचाने के लिए मचाने खम्भे और प्रासाद पर रखा जाता था / मचान चार लट्ठों को बांध कर बनाया जाता था। उस पर चढ़ने के लिये निसनी. फलक और पीढ का उपयोग होता था। बाजारों में मिठाइयाँ बिक्री के लिए रखी जाती थीं। जिस भोजन में छोंका हुआ शाक और यथेष्ठ मात्रा में सूप दिया जाता, वह अच्छा भोजन माना जाता और जिसमें बघार-रहित शाक होता, वह साधारण (शुष्क ) भोजन माना जाता था। भोजन आदि को ठंडा करने के लिए तथा अपने आप में हवा लेने के लिए तालवृन्त, पद्मिनी-पत्र, वृक्ष की डाली, मोर-पीच्छ, मोर-पीच्छों का समूह, चामर आदि का उपयोग किया जाता था।६ आभूषण : सोने-चांदी के आभूषण बनाए जाते थे। सोने के आषभूणों में हीरा, इन्द्र-नील मरकत और मणि जड़े जाते थे। मस्तक पर चूड़ामणि बाँधा जाता था। प्रसाधन: प्रसाधन में अनेक पदार्थो का उपयोग होता था। होठ तथा नखों को रंगना, पैरों पर अलक्सक रस लगाना, दाँतों को रंगना अदि किया जाता था। १-जिनदास चूर्णि, पृ० 197 / २-वही, पत्र 197 : . . सिद्धत्थगणालो तमवि लोगोऊणसंतिकाऊण आमगं चेव खायति / ३-दशवकालिक 5 // 1167 / ४-वही, 21171,72 / / ५-दशवकालिक, 5 // 198 / ६-दशवकालिक, 4 सूत्र 21 / ७-जिनदास चूर्णि, पृ० 330 : वइरिंदनीलमरगयमणिणो इव जच्चकणगसहसंबद्धा। .5-वही, पत्र 350 : चूलामणी सा य सिरे कीरई।
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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