________________ 5. व्याख्या ग्रन्थों के सन्दर्भ में : मुनि कसा हो ? 171 14. वह तिनिश जैसा हो: जैसे तिनिश का पौधा सब ओर झुक जाता है, उसी प्रकार मुनि भी बड़ों के प्रति नम्र हो तथा श्रुत और अर्थ-ग्रहण के लिए छोटों के प्रति भी नम्र हो / ' 15. वह वंजुल-वेतस जैसा हो : ___ जैसे वंजुल के नीचे बैठने से सर्प निर्विष हो जाते हैं, उसी प्रकार मुनि भी दूसरों को निर्विष करने वाला हो—उसके पास आए हुए क्रोधाकुल पुरुष भी उपशान्त हो जाँय-ऐसी क्षमता वाला हो / 16. वह कर्णवीर (कणेर) के फूल जैसा हो : ' जैसे सभी फूलों में कणेर का फूल स्पष्ट और गन्ध रहित होता है, उसी प्रकार मुनि भी सर्वत्र स्पष्ट और अशील की गन्ध से रहित हो / ' 17. वह उत्पल जैसा हो: जैसे उत्पल सुंगंधयुक्त होता है, उसी प्रकार मुनि भी शील की सुगन्ध से युक्त हो। १-जिनदास चूर्णि, पृ० 73 : तिणिसा जहा सव्वतो नमइ एवं जहाराइणिए णमितव्वं, सुत्तत्थं च पडुच्च ओमराइणिएसुवि नमियव्वं / २-वही पृ० 73 : . वंजुलो नाम वेतसो, तस्स किल हेटु चिट्ठिया सप्पा निविसी भवंति, एरिसेण साहुणा. भवितव्वं, जहा कोहाइएहिं महाविसेहिं अभिभूए जीवे उवसासेइ / ३-वही, पृ०.७३ : कणवीरपुष्पं सव्वपुप्फेसु पागडं णिग्गंधं च, एवं साहुणावि सव्वत्थ पागडेण भवियव्वं, जहा असुइत्ति एस निगंथेणं असुभगंधो न भवइ सीलस्स एवं भवियव्वं / ४-वही, पृ० 73 : उप्पलसरिसेण साहुणा भवियव्वं, कहं ? जहा उप्पलं सुगंधं तहा साहुणा सीलसुगंधेण भवियव्वं /