________________ 170 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन 10. वह कमल जैसा हो: ___ जैसे कमल कीचड़ में उत्पन्न होता है, पानी में समृद्ध होता है, फिर भी उनसे अलिप्त रहता है। उसी प्रकार मुनि भी काम से उत्पन्न हुआ, भोगों से बढ़ा, फिर भी उनसे अलिप्त हो / ' 11. वह सूर्य जैसा हो: जैसे सूर्य तेजस्वी होता है और समस्त लोक को भेदभाव किए बिना प्रकाशित करता है, उसी प्रकार मुनि भी तेजस्वी हो तथा राजा और रंक का भेद किए बिना सबको समान रूप से धर्म का उपदेश देने वाला हो / 2 कहा भी है- जैसे बड़े आदमी को धर्म कहे वैसे ही तुच्छ को कहे और जैसे तुच्छ को कहे वैसे बड़े आदमी को कहे / 12. वह पवन जैसा हो: ___ जैसे पवन अप्रतिबद्ध होता है—मुक्त होकर चलता है, उसी प्रकार मुनि भी अप्रतिबद्ध-विहारी हो / 13. वह विष जैसा हो: जैसे विष सर्व रसानुपाती होता है—सभी रसों को अपने में समाहित कर लेता है, उसी प्रकार मुनि भी सर्व रसानुपाती हो—प्रिय-अप्रिय आदि सभी स्थितियों को अपने में समाहित करने वाला हो। कहा भी है हम मनुष्य हैं। न मित्र हैं और न पण्डित, न मानी हैं और न धन-गर्वित / जैसेजैसे लोग होते हैं, हम भी वैसे ही बन जाते हैं जैसे कि विष रस के अनुरूप ही अपने को परिवर्तित कर लेता है।" १-जिनदास चूर्णि, पृ० 72 : जहा पउमं पंके जायं जले समिद्धं तेहिं चेव नोवलिप्पइ, एवं साहुणावि कामेहि जाएण भोगेहिं संवद्धिएण तहा कायव्वं जहा तेहिं न लिप्पइ / २-वही, पृ० 72-73 : सूरो इव तेयसा जुत्तेण साहुणा भवितव्वं, जहा सूरोदयो समंता अविसेसेण लोगं पगासेइ, एवं साहुणावि धम्मं कहयंतेण राइणो दासस्स अविसेसेण कहेयव्वं / ३-वही, पृ० 73 : ___ जहा पवणो कत्थइ ण पडिबद्धो तहा साहुणावि अपडिबद्धेण होयव्वं / ४-वही, पृ० 73 : साहुणा विससमेण भवितव्वं, भणियं चवयं मणुस्सा ण सहा ण पंडिया, ण माणिणो णेव य अत्थगब्विया। जणं जणं (तो) पभवामु तारिसा, जहा विसं सव्वरसाणुवादिणं //