SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३-आहार-चर्या दशवकालिक एक आचार-शास्त्र है, इसलिए उसके व्याख्या-ग्रन्थ उसी मर्यादा के प्रतिनिधि हों, यह अस्वाभाविक नहीं है। जो आचार-संहिताएं बनती हैं, वे देश-काल और पारिपाश्विक वातावरण को अपने-अपने कलेवर में समेटे हुए होती हैं। यही कारण है कि उनसे हमें मूल प्रतिपाद्य के साथ-साथ अन्य अनेक विषयों की जानकारी प्राप्त होती है। इतिहास-ग्रन्थ जैसे आचार-संहिताओं के परोक्ष-स्रोत होते हैं, वैसे ही आचार-ग्रन्थ इतिहास के परोक्ष स्रोत होते हैं। दशवकालिक और उसके व्याख्या-ग्रन्थ ऐतिहासिक ग्रन्थ नहीं हैं फिर भी उनमें भारतीय इतिहास के अनेक तथ्य उपलब्ध होते हैं। व्याख्याकारों ने विषय का स्पर्श करते हुए अपने अध्ययन का प्रचुर उपयोग किया है। उनके बाहुश्रुत्य के साथ-साथ अनेक नवीन ज्ञान-स्रोत प्रवाहित हुए हैं। नियुक्तिकार और चूर्णिकार ने साधु की चर्या और कर्त्तव्य-विधि का जिस उदाहरण शैली में निरूपण किया है, वह रसात्मक ही नहीं, प्राणि-जगत् के प्रति हमारे दृष्टिकोण को कुशाग्रीय बनाने वाली भी है। ___ इस सूत्र के पहले अध्ययन का नाम 'द्रुम-पुष्पिका' है। इसमें मुनि आहार कैसे ले और कैसा ले—इन दो प्रश्नों का स्पष्ट निरूपण है। किन्तु वह आहार किसलिए ले, कैसे खाए और उसका फल क्या है-इन प्रश्नों का स्पष्ट निरूपण नहीं है। नियुक्तिकार ने इन स्पष्ट और अस्पष्ट प्रश्नों का संक्षेप में बड़ी मार्मिकता से स्पर्श किया है। चूर्णि और टीका में नियुक्तिकार के वक्तव्य को कुछ विस्तृत शैली में समझाया गया है / नियुक्तिकार ने द्रुम-पुष्पिका अर्थात् मुनि की आहार-चर्या के चौदह पर्यायवाची नाम . बतलाए हैं' : . . . १-द्रुम-पुष्पिका ८-सर्प २--आहार-एषणा ____३-गोचर १०-अक्ष ४-त्वक ११–तीर ५-उञ्छ १२–गोला १३-पुत्र -जलक १४-उदक १-दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 37 /
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy