________________ 5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : व्याख्या-ग्रन्थ परिचय 157 भाषा में लिखी जाने लगीं। इस पर हरिभद्र सूरि ने संस्कृत में टीका लिखी। इनका समय विक्रम की आठवीं शताब्दी है। . यापनीय संघ के अपराजित सूरि (या विजयाचार्य-विक्रम की आठवीं शताब्दी) ने इस पर 'विजयोदया' नाम को टीका लिखी। इसका उल्लेख उन्होंने स्वरचित आराधना की टीका में किया है। परन्तु वह अभी उपलब्ध नहीं / हरिभद्र सूरिकी टीका को आधार मान कर तिलकाचार्य (विक्रम की 13-14 वीं शताब्दी) ने टीका, माणिक्यशेखर (15 वीं शताब्दी) ने नियुक्ति-दीपिका तथा समयसुन्दर (विक्रम की 1611) ने दीपिका, विनयहंस (विक्रम सं० 1573) ने वृत्ति, रामचन्द्र सूरि (विक्रम सं० 1678) ने वार्तिक और पायचन्द्र सूरि तथा धर्मसिंह मुनि (विक्रम की १८वीं शताब्दी) ने गुजराती-राजस्थानी मिश्रित भाषा के टब्बा लिखा। किन्तु इनमें कोई उल्लेखनीय नया चिन्तन और स्पष्टीकरण नहीं है। ये सब सामयिक उपयोगिता की दृष्टि से रचे गए हैं। इसकी महत्त्वपूर्ण व्याख्याएँ तीन ही हैं-दो चूर्णियाँ और तीसरी हारिभद्रीय वृत्ति / १-गाथा 1197 की वृत्तिः ___दशकालिकटीकायां श्री विजयोदयायां प्रपंचिता उद्गमादिदोषा इति नेह प्रतन्यते।