________________ १-व्याख्या-ग्रन्थ परिचय दशवकालिक की प्राचीनतम व्याख्या नियुक्ति है। उसमें इसकी रचना के प्रयोजन, नामकरण, उद्धरण-स्थल, अध्ययनों के नाम, उनके विषय आदि का संक्षेप में बहुत सुन्दर वर्णन किया है। यह ग्रन्थ उत्तरवर्ती सभी व्याख्या-ग्रन्थों का आधार रहा है। यह पद्यात्मक है। इसकी गाथाओं का परिमाण टीकाकार के अनुसार 371 है। इसके कर्ता द्वितीय भद्रबाहु माने जाते हैं। इनका काल-मान विक्रम की पाँचवीं-छठी शताब्दी है। ___ इसकी दूसरी पद्यात्मक व्याख्या भाष्य है। चूर्णिकार ने भाष्य का उल्लेख नहीं किया है। टीकाकार भाष्य और भाष्यकार का अनेक स्थलों में प्रयोग करते हैं।' टीकाकार के अनुसार भाष्य की 63 गाथाएँ हैं। इसके कर्ता की जानकारी नहीं है / टीकाकार ने भी भाष्यकार के नाम का उल्लेख नहीं किया है। वे नियुक्तिकार के बाद और चूर्णिकार से पहले हुए हैं। ... हरिभद्र सूरि ने जिन गाथाओं को भाष्यगत माना है, वे चूर्णि में हैं। इससे जान पड़ता है कि भाष्यकार चूर्णिकार के पूर्ववर्ती हैं। ___ इसके बाद चूर्णियाँ लिखी गई हैं। अभी दो चूर्णियाँ प्राप्त हैं। एक के कर्ता अगस्त्यसिंह स्थविर हैं और दूसरी के कर्ता जिनदास महत्तर (वि० की 7 वीं शताब्दी)। मुनि श्री पुण्यविजयजी के मतानुसार अगस्त्यसिंह चूर्णि का रचनाकाल विक्रम की तीसरी शताब्दी के आस-पास है। १-(क) हारिभद्रीय टीका, पत्र 64 : भाष्यकृता पुनरुपन्यस्त इति / (ख) वही, पत्र 120 : - आह च भाष्यकारः। - (ग) वही, पत्र 128 : व्यासार्थस्तु भाष्यादवसेयः / इसी प्रकार भाष्य के प्रयोग के लिए देखें- हारिभद्रीय टीका, पत्र 123,125,126,129,133,134, 140,161,162,278 / २-हारिभद्रीय टीका, पत्र 132 : / एतामेव नियुक्तिगायां लेशतो व्याचिख्यासुराह भाष्यकारः। एतदपि नित्यत्वाविप्रसाधकमिति नियुक्तिगाथायामनुपन्यस्तमप्युक्तं सूक्ष्मधिया भाष्यकारेणेति गाथार्थः। ३-बृहत्कल्प भाष्य, भाग-६, आमुख पृष्ठ 4 /