________________ 4. चर्यापथ : वाक्-शुद्धि 133 है, ऐसा न कहे।' फल या धान्य पके हैं या कच्चे, तोड़ने योग्य हैं या नहीं, फली नीली हैं या सूखी आदि सावध भाषा का प्रयोग न करे / 2 मृत-भोज, पितर-भोज या जीमनवार करणीय है, चोर वध्य है, नदी के घाट सुन्दर हैं—ऐसा न कहे। जीमनवार को जीमनवार है, चोर को धनार्थी है और नदी के घाट समान हैं—ऐसा कहे। भोजन सम्बन्धी प्रशंसा-वाचक शब्दों का प्रयोग न करे / 5 वस्तुओं के क्रय-विक्रय की चर्चा न करे / 6 असंयमी को उठ, बैठ, सो आदि आदेश वचन न कहे / असाधु को साधु न कहे, साधु को साधु कहे। अमुक की जय हो, अमुक की नहीं -ऐसा न कहे। अपनी या दूसरों की भौतिक सुख-सुविधा के लिए प्रतिकूल स्थिति के न होने और अनुकूल स्थिति के होने की बात न कहे। 0 मेघ, आकाश और मनुष्य को देव न कहे। उन्हें देव कहने से मिथ्यात्व का स्थिरीकरण होता है, इसलिए उन्हें देव नहीं कहना चाहिए / 2 वैदिक साहित्य में आकाश, मेघ और राजा को देव माना गया है, किन्तु यह वस्तुस्थिति से दूर है। जनता में मिथ्या धारणा न फैले, इसलिए यह निषेध किया गया है। ___पाप का अनुमोदन करने वाली, अवधारिणी, परोपघातिनी, हास्य पैदा करने वाली आदि भाषा न बोले / 1 3 अदुष्ट भाषा बोले / 14 हित और आनुलोमिक वचन बोले / 15 १-दशवैकालिक, 7127-29 / : २-वही, 7 / 31-35 / / ३-वही, 736 / - ४-वही, 7337 / ५-वही, 741 ६-वही, 7 / 43,45,46 / ७-वही, 747 / -वही, 7 // 48 // ९-वही, 750 / १०-वही, 7.51 / ११-वही, 752,53 / १२-अगस्त्य चूर्णि: मिच्छत्तथिरीकरणादयो दोसा इति / १३-दशवकालिक, 7354 / १४-वही, 7.55 / १५-वही, 7356 /