________________ RE 2. अन्तरङ्ग परिचय : साधना के अंग "भिक्षुओ, जिसने कायानुस्मृति का अभ्यास किया है, उसे बढ़ाया है, उस भिक्षु को दस लाभ होने चाहिएँ / कौन से दस ? ___ १–वह अरति-रति-सह ( उदासी के सामने डटा रहने वाला) होता है। उसे उदासी परास्त नहीं कर सकती। वह उत्पन्न उदासी को परास्त कर विहरता है। २—वह भय-भैरव-सह होता है। उसे भय-भैरव परास्त नहीं कर सकता। वह उत्पन्न भय-भैरव को परास्त कर विहरता है। __ ३-शीत, उष्ण, भूख-प्यास, डंक मारने वाले जीव, मच्छर, हवा, धूप, रेंगनेवाले जीवों के आघात; दुरुक्त, दुरागत वचनों, तथा दुःखदायी, तीव्र, कटु, प्रतिकूल, अरुचिकर, प्राण-हर शारीरिक पीड़ाओं को सह सकने वाला होता है।" 1 भगवान महावीर अज्ञान-कष्ट का विरोध और संयम-पूर्वक कष्ट-सहन का समर्थन करते हैं। इन दोनों के पीछे हिंसा और अहिंसा की दृष्टियाँ हैं, इसलिए इनमें कोई असंगति नहीं है। महात्मा बुद्ध भी कष्ट-सहन का विरोध और समर्थन दोनों करते हैं किन्तु उनके पीछे हिंसा और अहिंसा के स्थिर दृष्टिकोण नहीं हैं, इसलिए उनके विरोध और समर्थन का आधारभूत कारण नहीं मिलता। दीघनिकाय (पृ०६२-६३) में जिन नियमों को झूठा शारीरिक तप कहा गया है, उनमें बहुत कुछ ऐसे नियम हैं जिनका निर्माण अहिंसा और अपरिग्रह के सूक्ष्म चिन्तन के बाद हुआ है। नग्न रहना, बुलाई भिक्षा का का त्याग२, अपने लिए लाई भिक्षा का त्याग3, अपने लिए पकाए भोजन का त्याग निमंत्रण का त्याग, दो भोजन करने वालों के बीच से लाई भिक्षा का त्याग, गर्भिणी स्त्री द्वारा लाई भिक्षा का त्याग, दूध पिलाती स्त्री द्वारा लाई भिक्षा का त्याग", वहाँ से भी नहीं (लेना) जहाँ कोई कुत्ता खड़ा हो', न मांस, न मछली, न सुरा, न कच्ची १-बुद्ध-वचन, पृष्ठ 41 / २-मिलाइए-दशवकालिक, 6 / 48,49 / * 3- , .. वही, 6 / 49 / 6 / 48,49 / 5 / 1 / 37 / 5 // 1 // 39,40,41 / 5 // 1142,43 / 5 / 1 / 12,22 / चूलिका 27 / 5 // 2 // 36 //