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________________ दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन परीपह-सहन का दृष्टिकोण : __साधना के क्षेत्र में काय-क्लेश बहुत ही विवादास्पद रहा है। कहीं इसका ऐकान्तिक समर्थन मिलता है, कहीं इसके संयत-प्रयोग का समर्थन मिलता है तो कहीं इसका अनावश्यक विरोध भी मिलता है। भागवत और मनुस्मृति में वानप्रस्थ और संन्यासी के लिए जिस आचार का विधान किया है, उसमें जितना आग्रह कोरे कष्ट-सहन का है, उतना अहिंसा का नहीं है / वानप्रस्थ की ऋतुचर्या का उल्लेख करते हुए कहा गया है“वह ग्रीष्म-ऋतु में पंचामि तपे ; वर्षा ऋतु में खुले मैदान में रह कर वर्षा की बौछार सहे ; जाड़े के दिनों में गले तक जल में डूबा रहे। इस प्रकार घोर तपस्यामय जीवन व्यतीत करे।"१ जैन-परम्परा अहिंसा-प्रधान रही, इसलिए वहाँ श्रमण की ऋतुचर्या का इन शब्दों में वर्णन किया गया है- “सुसमाहित निग्रन्थ ग्रीष्म में सूर्य की आतापना लेते हैं, हेमन्त में खुले वदन रहते हैं और वर्षा में प्रतिसंलीन-एक स्थान में रहने वाले होते हैं।"२ जैन-परम्परा ने सुखवाद का खण्डन किया और अहिंसा का आग्रह रखते हुए यथाशक्ति कष्ट-सहन का समर्थन किया। सुख से सुख मिलता है"-इस मान्यता के अनुसार चलने वाले अहिंसा का आग्रह नहीं रख सकते। वे थोड़ी-सी बाधा होने पर कतरा जाते हैं। 'आत्म-हित दुःख से मिलता है इसका तात्पर्य यह नहीं कि कष्टसहन से आत्म-हित होता है, किन्तु यहाँ बताया गया है कि आत्म-हित कष्ट-साध्य है। कष्ट-सहन आत्म-हित का एक साधन है और इसलिए कि अहिंसा की साधना करने वाला कष्ट आ पड़ने पर उससे विचलित न हो जाए।" अत: * कहा गया है कि परीषह से १-क) भागवत, 11 / 18 / 4 : ग्रीष्मे तप्येत पंचाग्नीन् , वर्षास्वासारषाड् जले। आकण्ठमग्नः शिशिरे, एवं वृत्तस्तपश्चरेत् // (ख) मनुस्मृति, 6 / 23 : ग्रीष्मे पंचाग्नितापः स्याद्, वर्षास्वभ्रावका शिकः / आर्द्र वासास्तु हेमन्ते, क्रमशो वर्धयंस्तपः // २-दशवैकालिक, 3 / 12 / ३-सूत्रकृतांग, 1 / 3 / 4 / 6-8 : इहमेगे उ भासंति मेहुणे य परिग्गहे / ४-वही, 1 / 2 / 2 / 30 : अत्तहियं खु दुहेण लब्भइ। ५-वही, 112 / 1 / 14: अविहिंसामेवपव्वए, अणुधम्मो मुणिणा पवेदितो॥
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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