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________________ २-साधना के अंग अहिंसा का दृष्टिकोण : ___ निनन्थ के साधनामय जीवन का प्रारम्भ महाव्रत के स्वीकार से होता है। वे पाँच हैं--अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह / अहिंसा शाश्वत धर्म है। भगवान् महावीर ने इसका निरूपण किया, इससे पहले अतीत के तीर्थकर इसका निरूपण कर चुके थे और भविष्य के तीर्थकर भी इसका निरूपण करेंगे।' संक्षेप में यही महाव्रत है। विस्तार की ओर चलें तो अहिंसा और अपरिग्रह महाव्रत के ये दो रूप बन जाते हैं।' अहिंसा, सत्य और बहिस्तात्-आदान–यह तीन महाव्रतों का निरूपण है। प्राणातिपात-विरमण, मृषावाद-विरमण, अदत्तादान-विरमण और बहिस्तात्-आदानविरमण—यह चातुर्याम धर्म है।' अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-ये पाँच महाव्रत हैं / 5 रात्रि-भोजन-विरति छठा व्रत है / 6 जैन आगमों के अनुसार बाईस तीर्थंकरों के समय चातुर्याम धर्म रहा है और * पहले (ऋषभदेव) तथा चौबीसवें तीर्थंकर (महावीर) के समय पंचमहाव्रतात्मक धर्म रहा। एक, दो और तीन महाव्रतों की परम्परा रही या नहीं, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। किन्तु हिंसा और परिग्रह पर स्थानांग' आदि में अधिक प्रहार किया गया है, इससे लगता है कि असंयम १-आचारांग, 1 / 4 / 11127 / २-सूत्रकृतांग, 2 // 1 // ३-आचारांग, 18 / 1 / 197 : - जामा तिण्णि उदाहिया। ४-स्थानांग, 4 / 1 / 266 / ५-उत्तराध्ययन, 21 / 12 / -दशवकालिक, ४ासूत्र 17 / ७-उत्तराध्ययन, 23 / 23,24 / ८-स्थानांग, 201164 /
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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