________________ १३-तुलना ( जैन, बौद्ध और वैदिक ) ___ भारतीय जन-मानस जैन, बौद्ध और वैदिक–तीनों धाराओं से अभिषिक्त रहा है। इन तीनों में अत्यन्त नैकट्य न भी रहा, तो भी उनके अन्तर्दर्शन में अत्यन्त दूरी भी नहीं रही। यही कारण है कि उन तीनों में एक दूसरे का प्रतिबिम्ब मिलता है। कौन किस का ऋणी है, यह सहजतया नहीं कहा जा सकता। सत्य की सामान्य अभिव्यक्ति सब में है और इसी को हम तुलनात्मक अध्ययन कहते हैं। सत्य एक है। उसकी किसी के साथ तुलना नहीं होती। उसकी शब्दों में जो समान अभिव्यक्ति होती है, उसी की तुलना होती है। इस सूत्र के कतिपय पद्यों की बौद्ध तथा वैदिक साहित्य के पद्यों से तुलना होती है। कहीं-कहीं शब्दसाम्य और कहीं-कहीं अर्थसाम्य भी है। वह यों है-. धम्मो मंगलमुक्किट्ठ, यम्हि सच्चं च धम्मो च, अहिंसा संजमो तवो। अहिंसा संयमो दमो। . देवा वि तं नमसंति, स वे वंतमलो धीरो, सो थेरोति पवुच्चति // जस्स धम्मे सया मणो॥ (धम्मपद 16 / 6) (1 / 1) 'जहा दुमस्स पुप्फेसु, भमरो आवियइ रसं। न य पुष्पं किलामेइ, * सो य पीणेइ अप्पयं / / यथापि भमरो पुप्फं, वण्ण-गंधं अहेठयं / पलेति रसमादाय, एवं गामे मुनी चरे // (धम्मपद 4 / 6 ) (12) कहं नु कुज्जा सामण्णं, जो कामे न निवारए। पए पए विसीयंतो, संकप्पस्स वसं गओ / / (2 / 1) कतिहं चरेय्य सामनं, वित्तं चे न निवारए / पदे पदे विसीदेय्य, सङ्कप्पानं वसानुगो / ( संयुत्तनिकाय 1 / 1 / 17)