________________ 7Y पृष्ठ W0 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन ४-उत्तराध्ययन चूर्णि : दशवकालिक के स्थल . 1 // 34 चूर्णि 40 5 / 1124 2041 चर्णि 83 चू०१शसू०१८ 5 // 18 चूर्णि 137 5 // 1494 आदि-आदि। शय्यम्भव से पहले उत्तराध्ययन आचारांग के पश्चात् पढ़ा जाता था किन्तु दशवैकालिक की रचना के पश्चात् इस क्रम में परिवर्तन हुआ और वह दशवकालिक के पश्चात् पढ़ा जाने लगा। तेरापंथ-संघ में नव-दीक्षित मुनि को प्रारम्भ में यहीं सूत्र पढ़ाया जाता है। अन्य सम्प्रदायों में भी यही प्रथा है। दिगम्बर-सम्प्रदाय के अनुसार दशवकालिक आरातीय आचार्य-कृत अंग-बाह्य श्रुत है। परन्तु माना जाता है कि वह आज उपलब्ध नहीं है और जो उपलब्ध है, वह अप्रमाण है / १-(क) उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा 3 / (ख) उत्तराध्ययन चूर्णि, पृष्ठ 2: / उत्तरझयणा पुव्वं आयारस्सुवरि आसि, तत्थेव तेसिं उवोद्घात संबंधाभिवत्थाणं, ताणि पुण जप्पभिई अज्जंसेज्जंभवेण मणगपितुणा मणगहियत्थाए णिज्झहियाणि दस अज्झयणाणि दसवियालिय मित्ति, तम्मि चरणकरणाणुयोगो वणिज्जति, तप्पभिई च तस्सुवरि ठवित्ताणि। . (ग) उत्तराध्ययन बृहद् वृत्ति, पत्र 5 : आचारस्योपर्यव–उत्तरकालमेव 'इमानी'ति हृदि विपरिवर्तमानतया प्रत्यक्षाणि, पठितवन्त इति गम्यते, 'तुः' विशेषणे, विशेषश्चायं यथा- शय्यम्भवं यावदेष क्रमः, तदाऽऽस्तु दशवैकालिकोत्तरकालं पठ्यन्त इति / २-जैन साहित्य का इतिहास, पृष्ठ 53 /