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________________ आज सुघोमा घणा विद्वानोए एनी चर्चा करी छे / आ० सिद्धसेनना अन्य लेखकोए करेला उल्लेखो तेमनो समय निर्धारित करवामां बाह्य पुरवा तरीके गणी शकाय / 1. सातमो - आठमी सदीना आ० हरिभद्रसूरि आ० सिद्धसेन अने __'सन्मतिर्क'नो उल्लेख करे छे / 2. श्री. जिनदासगणी महत्तर (सं. 676) पण आ० सिद्धसेन अने 'सन्मतितर्क'नो उल्लेख करे छ / 3. श्री. जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण (सं.६११) आ० सिद्धसेन द्वारा प्रस्थापित अभेदवादनुं खंडन करे छे / 4. श्री. पूज्यपाद (छट्ठी सदी) पोताना 'जैनेन्द्र व्याकरण'मां आ०. सिद्धसेननो उल्लेख करे छे अने तेमना 'सर्वार्थसिद्धि'मां आ० सिद्धसेनकृत 'द्वात्रिंशिकाओ' नो उल्लेख करे छ। 5. अन्य उल्लेखो परथी लागे छे के आ• मल्लवादीए सन्मतितर्क . पर टीका लखी हतो एवो तेमना 'द्वादशारनयचक्र'मां तेनो उल्लेख छ / जो के आ० मल्लवादीनो समय सुनिश्चित नथी पण एटलं चोक्कस के आ० सिद्धसेन तेमनी पूर्व थया हशे परंपरा तेमने उज्जैनना विक्रमसंवत्संस्थापक विक्रमादित्यना समकालीन ठेरवे छे अने ते प्रमाणे तेमनो समय इ.स. पूर्वे 57 आसपासनो ठरे। - मा. सिद्धसेन विक्रमादित्यना समकालीन हता एबुं अनेक .
SR No.004300
Book TitleDwatrinshad Dwatrinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherVijaylavanyasuri Granthmala
Publication Year1977
Total Pages694
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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